ये रिश्ता क्या कहलाता है…


बहुत समझने की कोशिश करती हूँ कि कुछ रिश्ते अपने आप में इतने अनोखे कैसे होते हैं? राहुल ने फोन किया था कुछ दिन पहले और कहा कि बहुत दिन हो चुके हैं, चलो मिलते हैं यार। इधर अंशिका का भी कॉल आ ही रहा था। वो भी मिलने के लिये कह ही रही थी। मैंने भी सोचा कि कुछ काम तो है नहीं, लेट्स मीट। अंदर से बहुत अजीब लग रहा था कि राहुल और अंशिका जब आमने सामने होंगे तो कैसा होगा? सोच से गुज़रते हुए शाम का वक्त भी आ गया। मैं ऑफिस से सीधे मॉल में चली गई। अंशिका पहले से ही अपने पति के साथ हल्दिराम के सामने खडी थी। बहुत दिनों बाद मिल रहे थे हम सब इसलिये थोड़ा चीखते हुए एक दूसरे से गले मिले। शिकायतों का सिलसिला शुरू हुआ और हम अंदर ही जाकर बातें करने लगे। तभी मेरे मोबाइल कि घंटी बजी और अंशिका ने झट से फोन उठा लिया।राहुल नाम पे नज़र पड़ते ही उसने फोन मेरी तरफ बढ़ा दिया। उसको शायद इस बात का अन्दाजा नहीं था कि मेरे बहाने उसको राहुल से भी मिलने का मौका मिलेगा। वो कांशियस जरुर हो गई थी, पर चेहरे पर एक सुकून का भाव था, जो कम से कम मेरी नज़रों ने तो ज़रुर देखा था। लगभग 5 मिनट बाद ही राहुल भी आया। उसकी पत्नी भी आई थी। अब हम पांच लोग थे, जिसमें मै सभी को जानती थी, और बाकी सब दो चार बार एक दूसरे से मिले थे। गप्पें चालू थीं। मैंने हमेशा की तरह कोल्ड कॉफी ऑर्डर किया। अंशिका ने पूछा शुगर के लिए। मैंने कहा के व्हाइट शुगर डाल दे। यादों का एक झोंका आया और तुम्हारे पास लेकर चला गया। याद आएं वो लम्हें जब एयरपोर्ट पे तुमने कहा था कि ज्यादा जीना है तो ब्राउन शुगर लिया करो और कम जीना है तो व्हाइट। मैं मुस्कुराई थी, थोड़ा हिचक के अपने होठों को दातों से दबाया भी था। राहुल ने जब मेरा नाम लिया तो मैं वापस वर्तमान में आई। राहुल और अंशिका सहज थे, शायद एक दुसरे का होना ही उन दोनों के लिए काफी था। अलग रह के भी दोनों सबसे पास थे। एक दूसरे को सबसे ज्यादा जानते थे और जानने के साथ समझते थे। समय बीता और सबने एक दूसरे को बाय कहा। मैंने कुछ काम का बहाना बनाया और रुक गई। उन दोनों के साथ तुम्हारी जो यादें आ गईं थी, मैं उनके साथ कुछ वक्त गुज़ारना चाहती थी। पूरे दो घंटे लेट आए थे तुम। हुह्ह….उस समय बहुत परेशान हुई थी, पर आज सोचती हूं तो सोचती हूं कि किसी किसी इंतज़ार में कितना मज़ा होता है ना 🙂 ये एक बेहद अच्छा एहसास होता है जब आप ये जानते हों कि दो आंखे हैं ऐसी जो आपको हमेशा देख रही हैं… दो पैर ऐसे हैं, जो हमेशा आपके साथ चल रहे हैं…दो हाथ ऐसे भी हैं, जो आपके गिरने की स्थिति में आपको संभालने के लिए हमेशा तैयार हैं….मैं इन सारे एहसासों के साथ जीती हूं…

“किसी के लिए किसी का होना हमेशा अच्छा होता है”

बहुत सारे लोग पूछते हैं कि राहुल और अंशिका के बीच क्या रिश्ता है? नाम नहीं दे सकती इस रिश्ते का। अच्छे-बुरे, सही-गलत से परे है ये रिश्ता…हमारे रिश्ते की तरह। जानती हूं कि दोनों सामाजिक रुप से ऐसे दायरे में हैं जहां इसे बहुत ही अलग तरह से देखा जाएगा। स्वीकृति तो कदापि नहीं मिलेगी, पर शायद इन दोनों को वो भी नहीं चाहिए। ये रिश्ता उस स्वीकृति से भी परे है। ये दोनों मुझे ‘हम’ जैसे लगते हैं। एक दुसरे को ना सोच के, एक दूसरे के लिए सोचते हैं।चाहत वही कि सामने वाला खुश रहे। ये अपने रिश्ते को नाम नहीं दे पाए।मैं भी नहीं दे सकती। क्या कहेंगे इस रिश्ते को? अंशिका राहुल को देखती हूं तो उनके प्यार पे प्यार आता है। हर किसी की ज़िंदगी में सामने वाला होना चाहिए। ज़िंदगी जीने में आसानी होती है।

कुछ लोग होते हैं कुछ भाव से परे….

समझ लो तो रूक्मणी, अपना लो तो राधा, ना समझो तो मीरा…..     meera

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