सोच…


रुको, अभी बेटे को लाने जा रहा हूँ, फिर फोन करता हूँ। इतना कह के तुमने फोन काट दिया। पूरी रात इंतज़ार करती रही पर तुम्हारा कुछ पता नहीं। पूरे 1 महीने हो गये हैं मुझे मायके आये हुए पर इस बीच में तुम्हारे कॉल्स का आना कुछ कम हो गया है। 2-4 दिनों से घर में बहुत हलचल थी। अंजू की शादी का हल्ला बहुत हो रहा है। सबकी अलग अलग प्लॉनिंग..पर देखो ना . मेरी सोच अब भी तुम पर ही ठहरी हुई है। इस 1 महीने में बहुत कुछ हो गया। ह्रितिक और उसकी बीवी अब अलग हो गये, गौहर आखिरकार बिग बॉस जीत ही गई, दिल्ली में आप की सरकार भी आ गई, फारुख शेख चल बसे….और…और चल बसा शायद तुम्हारा प्यार भी। अंतिम सांसें ले रहा था शायद बहुत दिनों से, ऐसा मैंने महसूस किया था। कहीं ऐसा तो नहीं कि मेरा यहां आना तुम्हें पसंद नहीं? ऐसा है तो कह दो ….अबसे नहीं आउंगी… कम से कम इस अहसास से तो बची रहूंगी।

मुझे कभी भी सब कुछ नहीं चाहिए था…बहुत कुछ भी नहीं शायद…पर हां…कुछ कुछ पाने की ख्वाहिश हमेशा से थी…सभी को होती होगी। तुम्हें नहीं थी? याद करो जब बिस्तर पे सोते हुए तुम मुझसे पूछते थे , किचन में काम करते हुए पसीने से लथपथ मेरे बदन को बाहों में भर के सवाल करते थे कि क्या तुम सच में मुझसे प्यार करती हो? वैसे तो सारे सवाल लालची होते हैं पर तुम्हारा कुछ ज्यादा ही लालची होता था। हर बार एक ही उत्तर तुम मुझसे पाते थे कि हां…सबसे ज्यादा। उसके बाद तुम हम्म्म्म कह के चुप हो जाते थे जैसे जान लिया जो जानना था।सो जाते थे निश्चिंत होकर…पर मैं ??? मेरे उत्तर जैसे किसी प्रसव वेदना के बाद बाहर आते थे।मन सोचने पे मजबूर होता था कि इतने साल बाद भी ये सवाल क्यूं कचोटता है तुमको, क्या है तुम्हारे मन में? जब तुमसे मिली और अपने प्रति तुम्हारी इस चाहत को देखा तो शीशे के आगे घंटों खड़े होकर खुद से ये सवाल किया है मैंने कि क्या है मुझमें ऐसा जो तुमने मुझे प्यार किया, जो तुम मेरे साथ आये बिना किसी परवाह के। मैं तो बहुत ही एवैं सी लड़की ठहरी, जो बिना बात हस भी सकती थी और बिना बात रो भी सकती थी।पर तुम तो थोड़े सीरियस टाइप थे। जिसे पूरी देश दुनिया के बारे में पता है, जिसकी गिनती होती है भीड़ में, जो अपने दिमाग से अलग है, अपने काम से अलग है ….पर मैं…अपनी किस्मत से अलग थी शायद जो तुमसे मिली। तुमपे इतनी निर्भरता ने मुझे अलग बना दिया था। इक इंसान ही तो थे तुम जो भगवान जैसे लगने लगे। हम एक हुए। प्रेमी प्रेमिका के बाद मां बाप की भूमिका में आए। मैं आज भी तुम्हारा चेहरा देख के जी रही थी पर तुम शायद मेरे उत्तरों से बहुत ज्यादा निश्चिंत हो गए थे या शायद सामंतवादी पति बन गए थे, जो मान के चलता है कि उसकी संपत्ति सिर्फ उसी की है, किसी दूसरे का हक नहीं…मैंने तुम्हारे इस अभिमान का मान हमेशा रखा, पर ये नज़रअंदाज़ी अब समझ नहीं आती।

कल तुम्हारी यादों में घिरी समुद्र के किनारे गई थी मैं। खुद परेशान थी इसलिए समुद्र को भी अकेले बता दिया। उससे उठती तरंगों को देखना अच्छा लगा। आती जाती लहरें सुकून देने लगी मन को। मन ही मन में सोच लिया मैंने कि ये समुद्र भी मेरी तरह अकेला है। समुद्र मंथन में सात चीजें क्या निकल गई मुझे लगा कि अब समुद्र अकेला रह गया पर मैं भूल गई कि आज भी सीप और मोती का प्रेमाश्रय तो वही है ना….सोच कितना कुछ बदल सकती है ना….

देखो!कुछ और सोच बैठूं उससे पहले एक बार फिर से पूछ बैठो – क्या तुम सच में मुझसे प्यार करती हो? images-21

 

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