बियाहता


एक औरत के लिये अपनी भावनाओं को जताना, उन्हें बताना बहुत आसान होता है। बातों ही बातों में अपने प्यार का एहसास , गुस्से का एहसास वो करवाती रहती है। शब्दों का सहारा लेना उसके लिए बहुत मुश्किल काम नहीं पर एक मर्द के लिये…शायद ये बहुत आसान नहीं। चाह के भी परसों की बात नहीं निकल रही दिमाग से। शाम को मैंने तुम्हें बताया कि मेरे लिये लड़का देख लिया गया है और अब मैं शादी करने जा रही हूँ। तुम कैसे चुप हो गये थे जैसे सोच रहे हो कि भला ये क्या कह रही हूँ? ये तो कभी होना ही नहीं था। मैं तुमसे इतर भला कहाँ जा सकती थी। तुमने कहा कि मैंने वादा किया है तो मैं आ ही जाउंगा…मैंने भी गुस्से में पूछ डाला कि कब? 20 साल बाद? तुमने सिर्फ गुड नाइट कहा और सो गये…मेरी तरफ से भी कुछ पूछने की कोई कोशिश नहीं की गई, मैंने भी तुम्हारी तरह ही जवाब दिया और जता दिया कि मैं भी रुठ सकती हूं। अगले दिन मेरे फोन पे मेसेज की घंटी बजी। लगा कि कोई मेल या किसी का कोई मेसेज आया होगा। देखा तो तुमने दस्तक दी थी। तुमने लिखा था कि तुम मुझसे कुछ कहना चाहते हो। मैंने भी कह दिया कि हाँ कहो। मन हमेशा नकारात्मकता की तरफ पहले जाता है इसलिये मैंने सोच लिया था कि अब तुम कहोगे की मेरा इंतज़ार मत करो, जाओ जाकर शादी कर लो पर मुझे झूठा साबित करना तुम्हारा पसंदीदा काम रहा है। तुमने जो लिखा, उसे मैं अब तक जाने कितनी बार पढ़ चुकी हूँ –’प्लीज़ मत जाना मुझे छोड़ के । मैं नहीं रह सकता, मैं रहना भी नहीं चाहता। कोई नहीं जनता पर तुम तो जानती हो ना कि तुम मेरे लिये क्या हो? मैं किसी को नहीं समझा सकता…पर तुमको हमेशा बताया है, आज एक बार फिर बता रहा हूँ कि मुझे नहीं रहना तुम्हारे बिना। मैं तुमसे बहुत ज़्यादा प्यार करता हूँ।’  मैं चुपचाप पढ़ती जा रही थी तुम्हारे मन को। पहली बार खुद को गलत साबित होता देख बहुत अच्छा लग रहा था।

याद आई हमारी पहली मुलाक़ात। कैसे डरी हुई सी थी मैं। कैसे होगे तुम? मैं कैसे बात करूँगी? तुम मेरे बारे में क्या सोचोगे? एक डर के साथ मैं तुम्हारे पास गई थी। दिखने में डिसेंट और सीरियस लगे थे। मैं और भी ज़्यादा सहम गई थी ये देखकर कि तुम बोलते कम और ऑब्ज़र्व ज्यादा करते थे। बाहर से पूरा आत्मविश्वास दिखा रही थी पर अंदर से दिल ज़ोरों से उछल रहा था। तुमसे बातें शुरू हुई। मैं खुद को बहुत संभल के चला रही थी।2-4 दिनों में ही मैं इतना समझ चुकी थी कि तुम सिर्फ भूखे हो, प्यार के। पर मर्द हो ना, इस बात को स्वीकार ना कर पाओ। दिन बीतते गये और इसके साथ ही रिश्ते की उम्र भी बढ़ती गई। रिश्ता एक बच्चे से जवान होने लगा। इतने लम्बे समय में तुमने कभी भी ‘आई लव यू’ जैसे शब्दों का उपयोग नहीं किया था। इन्हीं सब से गुज़रते हुए एक वक़्त आया जब तुमको मेरी कीमत का एहसास हुआ। ‘कीमत’ – हाँ, इसी शब्द का उपयोग करती है एक औरत। वो एक पल, जब तुम्हें लगा कि मैं नहीं भी रह सकती हूँ, तुम्हारी आँखों मे आँसू ले आया । कानों में पहली बार तुम्हारी आवाज़ आई कि मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ। पहली बार मुझे तुम रोते हुए दिखे…हाँ, तुम रो रहे थे मेरे लिये। हमेशा से लगता था कि मेरा आदमी मर्द जैसा ही होना चाहिये। मजबूत, सब संभालने वाला…अपने आदमी के अंदर मैं कोई कमज़ोरी नहीं देखना चाहती थी पर जब तुम रोये तो जाने क्यूं अच्छा भी लगा। मेरे होने का एहसास तुमने हमेशा करवाया था पर वो अब महसूस हो रहा था।

तुमसे मिलने से पहले राधिका को देख कर हमेशा से लगता था कि वो कितनी लकी है ना, उसका पति कितनी केयर करता है उसकी। ज़िंदगी की ये बहुत बड़ी विडंबना है हम औरतों के साथ, दूसरों का साथी हमेशा ज्यादा समझदार लगता है। मर्दों के साथ भी ऐसा ही होता हो तो कुछ बता नहीं सकती। पर एक बात तुम मानो या ना मानो, तुमसे कल का प्यार नहीं है मेरा…अरसा हो गया है और इस विडंबना में खुद को शामिल करने के लिए अब मैं सुयोग्य भी हूं पर मैं इसको अब महसूस नहीं करती। अगर ये कहूं कि तुम्हारी उपस्थिति के बाद कभी नहीं किया तो भी सच ही होगा। प्यार और तकरार, दोनों ही सूरतों में तुम ही अजीज़ रहे हो।

कहते हैं कि प्यार है तो उसका इज़हार भी होना चाहिए, तुमने आज कर दिया। पिताजी ने कहा था कि ज़िंदगी में एक बार तो प्यार ज़रूर करना चाहिये…सभी को। मैंने भी कर लिया…तुमसे। अच्छा एहसास मिला है इस ज़िंदगी में तुम्हारे साथ…जो समझ में आता है तुम्हारे साथ वो सिर्फ इतना कि – हर किसी को नहीं मिलता यहाँ प्यार ज़िंदगी में, खुशनसीब हैं हम जिनको है मिली ये बहार ज़िंदगी में…शादी जब भी हो, पर मैं हूं…सिर्फ तुम्हारी बियाहता…

94895

0 thoughts on “बियाहता

Leave a Reply

Your email address will not be published.