बुआ चली गई…


आज मेरी बुआ चली गई। रिश्ता उसने सखी का बनाया था पर रिश्ते में वो बुआ ही थी। दो साल से बिस्तर पर ही थी। कुछ दिन पहले अपने बड़े बेटे की शादी की थी। जिसने सुना उसने यही कहा कि शायद बेटे की शादी देखने के लिए ही अपनी जाती हुई सांसों की डोर थाम रखी थी। शादी हो गई…सब अपने अपने घर राजी खुशी चले गए…बुआ भी अपने मां बाबुजी के पास चली गई।
बुआ की बिगड़ती स्थिति को सुना बहुत था पर जब आंखों से देखा तो लगा कि मुझे उनकी हालत के बारे में कुछ अंदाजा नहीं था। शादी का घर था तो बहुत सारे लोग थे और इसीलिए कोशिशें भी बहुत थी…उम्मीदें भी बहुत थीं…सबको लग रहा था कि शायद उसकी आवाज सुनकर बुआ कुछ बोल पाए। दुल्हन को जब लाया गया तब बुआ के हाथ, पैर, आंखें सब हिलने लगीं। लगा कि बस अब कुछ तो जादू होगा और दो साल से बिस्तर पर बेजान पड़ी हम सबकी चहेती बोल पड़ेंगी… पर बड़े पर्दे के जादू हकीकत की दुनिया से कोसों दूर होते हैं। ऐसा कुछ भी ना हो पाया और आज…ये खबर…शायद मुक्ति ही एकमात्र उपाय था उनके लिए…
याद आता है उनका वो स्वरूप जो अभी से बिल्कुल अलग था। बल खाती लंबी सी चोटी, नाभी से नीचे बंधी साड़ी, चांद की रोशनी सा गोरा रंग। बुआ की खूबसूरती उस समय और बढ़ जाती जब फूफाजी की शायरियां उनकी तारीफ में सुनाई देती। ‘साथी’ जैसा भी हो, दिखता रहे तो धड़कन चलती रहती है पर जब सामने रह कर वो तकलीफ में हो तब धड़कनें अटक कर चलती हैं। फूफाजी के साथ भी ऐसा ही होता हो शायद। उनके दिल का हाल बता पाना बड़ा मुश्किल है। उनका साथी उनके पास भी था, जुदा भी था…जिसे वो प्यार बेपनाह करते थे…शादी वाली रात उन्हें पहली बार जोर से रोते देखा था। चुपके से बहने वाले आंसुओं का हिसाब भला किसके पास होगा…कुछ दिन बाद शायद सब शांत हो जाए। ज़िंदगी है ही ऐसी कि आपको मसरूफ कर देती है और वक्त आपकी यादों के पिटारों को हमेशा खोलने का मौका नहीं देता पर बगल वाला खाली बिस्तर शायद फूफाजी को ये सुकून कभी ना दे या फिर एक लंबा अर्सा लग जाए…
तुम्हें बताया था ना मैंने कि कुछ दिन पहले मैं भी एक जगह जम कर खड़ी हो गई थी। उस समय जो सबसे पहले आंखों के सामने चेहरा आया वो बुआ का ही था।
कम्बख्त ये दिल की फितरत में बड़ी बेईमानी है। दिल मांगता था कि उन्हें मुक्ति मिले और आज जब मिल गई तो दिल मानता नहीं। उदास हूं इसलिए कह रही हूं कि चलते और हंसते हुए तुम्हारी दुनिया से जाना चाहूंगी। ना ही तुम्हारी धड़कनें अटकाउंगी और ना ही खुद इतना बेबस होना चाहूंगी। ईश्वर इतना करम ज़रूर करे।
बुआ मार्च में चली गई… दादी जुलाई में गई थी और बाबा नवंबर में…ये चार महीनों का जोड़ मुझे बिल्कुल पसंद नहीं।
तुम्हें पता है… इस वाली दुनिया में दादी मां- बाबा के पास सबसे पहले उछल कर आने वालों में बुआ ही थी… दुसरी दुनिया में भी उनके पास सबसे पहले उछल कर वो ही गई…

Candle-flame-and-reflection

0 thoughts on “बुआ चली गई…

  1. Kya sach esa hua afsos he mujhe bhi bua ji k jaane ka or abhi to tum bua k ladke k shadi se aayi thi

  2. Shayad isse zyada khubsurati se koi aur hum sab ki bhavnao ko vyakt nai kar pata.

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