बेचारा दिल…


लो भला, कमबख्त दर्द में कराह रहा है। चीख चीख के रो रहा है। अरे वही, जिसको माधुरी ने‘बेटा’ फिल्म में धक धक करवाया था, ‘लम्हे’ फिल्म में श्रीदेवी ने जिसमें कटार लगवाया था, प्रीति ज़िंटा ने ‘दिल से’ में जिसे जला दिया था…उसी…हां उसी दिल में आज एक बर फिर से दर्द उठा है। सपने देखने में ये किसी से कम नहीं है। प्यार की पींगे बढ़ाने में तो बॉस, कोई इसके आगे टिक ही नहीं सकता। मचलता तो ऐसे है, जैसे कोई बहुत छोटा बच्चा या अमीर परिवार का बिगड़ा ज़िद्दी लौंडा भी इसे मात नहीं दे सकता। अगर आप ऐसा सोच रहे हैं कि मैं इसे समझाती क्यूं नहीं, तो ऐसे में ज़रा अपने दिल को टटोलिए और मुझे बताइए कि कितना सुनता है वो आपकी और भला फिर आप क्या तीर मार पाते हैं।

पहले अकेला था बेचारा। कभी कभी किसी बात पे ठहर के सोचता था। मुझे परेशानी भी नहीं थी कोई। जाने कहां से इसे ये बात पता चली कि इसे एक दूसरे दिल से दोस्ती करनी चाहिए। मुझसे जब इसने पूछा तो मैंने मना किया…कहा कि भला क्या ज़रुरत है। अकेले कहां हो, मेरे अंदर रहते हो,ख्याल भी पूरा रखती हूं। फिर ये बेचैनी क्यों? पर जनाब कहां मेरी अक्ल पे भरोसा करते। खुद का दिमाग लगाने से तो दो साल का बच्चा भी बाज नहीं आता, तो ये तो दिल है जी। ये कब कहां सोचने की सोच रखता है। मुझे तो लगता है कि किसी ने शायद इसे बहला फुसला लिया। तभी इसकी सारी बत्ती गुल हो गई और रोशनी के लिए इसने ढूंढ़ा एक दूसरा दिल। जब मैंने इसे समझाया तो इसने उल्टा मुझे समझाना शुरु किया कि तुमको तो कुछ पता ही नहीं है। ये दिल से दोस्ती मेरा कुछ भी बिगाड़ नहीं सकती। होम्योपैथिक दवाई की तरह है ये, जिससे सिर्फ नफा ही होगा अगर जंच गई तो, नुकसान होने की संभावना नहीं है। मैं क्या करती भला इस बात को सुनकर। अवाक रह गई बस। आप सोच नहीं सकते कि कितने सकते में आ गई थी मैं ये सब तर्क सुनकर। नाकाम कोशिशें बहुत की मैंने इसे रोकने की…समझाने की…पर फायदा??? एक ढ़ेले भर का भी नहीं। वैसे सच बताऊं तो दिल मेरा काफी एक्साइटेड था और उसके जोश को देखकर मैं भी उसके बहकावे में आ ही गई।

लो भई, हो गई दोस्ती। अब क्या…एक था तब ही नहीं सुनता था, अब तो फ्रेंड भी था साथ में, अब तो कोई चांस ही नहीं था थमने का। भाई साहब जी अपने पूरे खुमार में थे कि बस, अब तो जग जीत कर ही रहेंगे। मैंने भी छोड़ दिया…शायद उसको खुश देख कर मुझे भी सुकून मिलने लगा।आप लोगों का एक्सपीरियन्स कैसा रहा है इन सब मामलों में,मुझे नहीं पता…पर मेरा सही सा ही था। मैंने भी मान लिया कि मैं ही नहीं समझ रही थी, दिल ही सही था। दिन बीतने लगे…महीने भी बीतने लगे। दिल खुश था। साले ने ढूढ़ां भी ऐसा, जो इसको पूरा समझता था। दिल वैसे मेरा बड़ा शरीफ था। एक दिन उसने मुझे बताया कि तुम्हें पता है, मुझसे और भी दिल दोस्ती करना चाहते हैं पर मैंने ठुकरा दिया है। मैंने पूछा कि क्यूं? तो बोला कि नहीं…एक ही सही है। बहुत सारे से दोस्ती हो जायेगी तो भटकता रहूँगा। लत नहीं लगानी है, एक साथ चाहिये था। अकेला था…अब नहीं हूँ… फिर भला भीड़ क्यूं इकट्ठी करूं। हम्म्म्म…कुछ भी कहिए आप, पर उस समय मैं निरुत्तर हो गई थी और महसूस किया था कि कुछ भी कह लो, साला दिल मेरा लाजवाब तो है। पर हाए रे इसकी किस्मत। इसे भीड़ नहीं चाहिए थी, पर इसके दोस्त को तो चाहिए थी। आप हैरां रह जाएंगे वो सुनकर जो बातें इन दोनों के बीच हुई-

मेरा दिल – क्या ज़रुरत है दूसरे दोस्त की, मैं हूं तो सही।

दोस्त दिल – हां, पर जब तुम नहीं होते तो कोई चाहिए। इसमें बुरा क्या है?

मेरा दिल – मुझे तकलीफ हो रही है, किसी और के पास मत जाओ प्लीज़।

दोस्त दिल – अमां रहने दो यार…तुम लड़की के दिल हो ना, इसलिए रोते ही रहते हो।

मेरा दिल – और तुम लड़के के हो, इसलिए ऐसा कर रहे हो?

दोस्त दिल – तुम अजीब बातें कर रहे हो, रहने दो…नया दोस्त इंतज़ार कर रहा है, मैं जा रहा हूं।

मेरा दिल – ये नया दोस्त लड़की का दिल है क्या?

दोस्त दिल – तुम्हें जवाब देना ज़रुरी नहीं।

मेरे दिल का दोस्त चला गया। अफसोस तो मुझे भी हुआ अपने दिल को रोता देख, पर मेरे चेहरे पे जीत की मुस्कुराहट भी थी कि आए और बोले कुछ, तब बताती हूं। मैंने तो पहले ही कह दिया था पर जाने क्यूं, मेरा दिल अपना ये रोना रोने मेरे पास कभी नहीं आया…और शायद पहली बार मुझे एहसास हुआ कि मैं अब तक सिर्फ यही जानती थी कि दिल तो बच्चा है जी…पर आज जाना कि इसके रोने या टूटने की आवाज़ नहीं होती…खामोश चीख को भला मैं कैसे सुन और समझ पाती…

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0 thoughts on “बेचारा दिल…

  1. वल्लाह! क्या खूब लिखा है! संवाद की शैली में लिखने और पढ़ने का आनंद ही कुछ और होता है। दिल की बेचारगी तो बस पूछो मत… तुमने बखूबी इसे बयां किया है। तुम्हारा लेखन हर नई पोस्ट के साथ और चमक पा रहा है श्वेता। और शब्दों को यह चमक तुम्हारे अंतस से मिल रही है। खुश रहो।

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