मृगतृष्णा…


चाहती बहुत हूँ पर मेरी कुव्वत नहीं कि मैं बहुत सारी चीज़ों से लड़ पाऊँ। मेरा दिमाग मेरी इस चाहत की हौसला अफज़ाई भी बहुत करता है पर फिर भी…दिल शायद अटक जाता है। आज भी ऐसा ही दिल अटका मेरा जब  ज़माने बाद भावना से मिली तो बस हैरां होकर देखती ही रह गई उसको। कितनी ज़्यादा बदल गई थी वो। जब हम पढ़ कर निकले तो उसने मुझसेकहा था कि वो बस शादी कर के सेटल हो जाएगी।वक्त की इब्तिदा ने उसे ऐसा करने ना दिया शायद इसीलिए वो आज मुझे ऐसी दिखी। बाल कंधे तक कटे हुए, चेहरे पर ज़रुरत से ज़्यादा मेक-अप, शरीर से चिपका हुआ टॉप, मिनी स्कर्ट और हाई हिल की सैंडिल। बहुत मंहगा सा दिखता हुआ पर्स उसके कंधे पर था और एक हाथ में एक कीमती सन ग्लास और दूसरे में सिगरेट। कुल मिलाकर वो मेरी बचपन वाली सहेली नहीं लग रही थी। बोलने का अंदाज़ अलग था, चीज़ों पर प्रतिक्रिया भी उसके कपड़ों की तरह बदल चुकी थी। हमेशा की तरह इस बार भी मैं उसमें कुछ खोजने लगी। हाँ, बचपन में भी मैं उसके मन को पढ़ने की कोशिश करती थी क्यूंकि वो चुप बहुत रहती थी। आज भी मैंने अपनी वो कोशिश जारी रखी।

‘चल, किसी पार्क में आराम से बैठ कर बातें करते हैं’।मेरे ऐसा कहने पर वो हंसने लगी। ‘पागल हो गई है क्या? पार्क में जाकर क्या करेंगे। अपन बच्चे थोड़े ही हैं?’ मैं हैरां होकर उसको देखने लगी। ये उसी भावना ने कहा था मुझे जिसे जब भी मौका मिलता, पार्क में जाकर बैठ जाती थी। कहती थी कि अजीब सा सुकूं मिलता है। ख़ुद से मुलाकात हो जाती है। मैंने हंस कर उससे पूछा कि क्या अब तुझे खुद से नहीं मिलना? क्या अब सुकूं नहीं चाहिए? वो मेरी बात को सुनकर मेरी ओर देखने लगी, फिर तुरंत ही हंसने लगी जैसे कि थोड़ी देर और देखा तो मैं उसको आज भी जान जाउंगी। हम कॉफी हाउस में चले गए। ऑर्डर करके बैठ गए। कोने वाला टेबल उसने चुना। मैं समझ गई कि भले ही पार्क में जाने के लिए मना कर उसने अपना दूसरा रूप मुझे दिखाने की कोशिश की थी, पर कोने वाली जगह चुनकर उसने मेरी सोच को सही साबित भी कर दिया था। और बता…क्या चल रहा है लाइफ में। मैंने उसकी चेहरे की तरफ गौर से देखते हुए पूछा था। ‘या…ऑल इज़ वेल। यू से…व्हॉट्स अप?’

मैंने भी उसकी तरह ही बोला कि या…ऑल इज़ वेल। हम दोनों ही मेरे इस अंदाज़ पर हंसने लगे। तू तो बहुत बदल गई भावना। अच्छा है, मॉड दिखने लगी है। मेरी इस बात पर उसने एक हल्की सी स्माइल दी…जो कि फीकी भी लगी। तू क्या कर रही है, उसने मुझसे पूछा। मैंने हंस कर कहा कि मैं भला कब कुछ करती थी। जिस काम को करने में मज़ा आता है, वहीं करती हूं। तू बता, काफी लम्बे समय से कुछ पता ही नहीं चल रहा था तेरा। वो बस मुस्कुराई…जिसे देख कर लगा कि बस अभी रो पड़ेगी। मैंने उसके हाथ पे अपना हाथ रख दिया। कभी कभी किसी की एक छुअन आपको बहुत मजबूत कर जाती है। मेरे उस टच ने शायद वही काम किया। कॉफ़ी की चुस्की के साथ उसने बोलना शुरू किया। शादी हो गई थी उसकी। दिखने मे पति वैसा ही मिला था जो हर किसी के सपने में शायद आता हो, पर तालमेल कुछ वैसा ही रहा जिसे मनोहर कहानियों में जगह मिल जाये।

शरीर से घर आ चुकी हूँ अभी मैं पर शायद मेरा दिल और दिमाग भावना के साथ अभी भी उसी कॉफी की टेबल पर ही अटका हुआ है। भावना अपने पति के लिए शायद एक वो सपना थी, जिसे वो दूसरों को दिखाकर फायदा उठाना चाहता था। लोगों के अंदर भावना को लेकर ललक जगाना और फिर अपने सारे काम निकलवाना ही उसका ज़रिया था उन्नति पाने का। भावना ने उसको मना भी किया था पर मार पीट और हर दिन ज़िरह के अलावा कुछ भी हासिल होता नहीं था। पति ने विश्वास दिला दिया था कि अगर वो इन सबमें उसका साथ दे तो बदले में उसे अपने पति का ‘सच्चा वालाप्यार’ मिलेगा।

नतीजा…अब भावना को वो सारे हाव भाव पता थे, जो किसी भी इंसान के ठरक को जगा सके। हां, अजीब सी चीज़ थी ये, पर अब ऐसी ही थी। सोच रही हूं कि कितना मुश्किल होता होगा खुद की नुमाइश कर पति का प्यार पाना। भावना वही कर रही थी। उसे समझाया मैंने कि अलग हो जाओ। ये प्यार सिर्फ इक सराब है। ऐसा हमेशा लगता रहेगा कि शायद ये कर दूं तो पति का प्यार मिल जाए पर कब भला किसी की मृगतृष्णा बुझी है। मृगमरीचिका के पीछे भाग कर क्या पाएगी वो? प्यासी है, प्यासी ही रह जाएगी…
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क्या कहूं तुमसे आज…मुझसे कभी ‘सच्चा वाला प्यार’ मत करना…

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