गठरी…


एक भारी सी गठरी

पड़ी हुई है मेरे दिलो दिमाग पर

जाने क्या क्या भरा हुआ है इसमें

सबसे भारी यादें हैं…

नापा नहीं है मैंने पर,

तेरा प्यार होगा आधा किलो

पचास किलो का वक्त होगा

जो गुज़ारा हमने संग संग

मेरी तड़प बीस किलो होगी

क्विंटल के आस पास मेरे आंसु होंगे

पांच किलो वो तनहा रातें होंगी

दर्द हो सकता है दस किलो का

पाव भर तेरे छुअन का एहसास भी है

आधा किलो हमारी हंसी भी है

और भी जाने क्या क्या…

मैं खोल कर देखने से डरती हूं इसको

खोला तो सब बिखर जाएगा

गर ना समेट पाई तो?

पर बोझ भी इसका सहा नहीं जाता

कई बार फेंकना चाहा

पर हर बार ये मेरे दर चली आती है

जैसे जादू सा कुछ भरा हो इसमें

बेचना चाहती हूं अब इसे

तुम ही बता दो ना मुझे

भला क्या कीमत लगेगी इसकी?

leather-pouch

 

 

 

0 thoughts on “गठरी…

  1. I think every one has one such गठरी.and then ts priceless.no one can count its value. Good thought shweta.

  2. Hi, I feel the we as human can only our own pain, love, joy, misery , anxiety, curiosity, grief , excitement ….these emotions get there meaning when shared together in terms of beautiful poems written above ….

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