औरत और मर्द की कहानी…


ये कहानी है एक औरत की…ये कहानी है एक मर्द की…ये कहानी है उन दो लोगों की, जो अजीब से थे…जिन्हें देख कर हर कोई उन्हें समझने की कोशिश करता पर होता हमेशा नाकाम…

औरत, औरत जैसी थी। नहीं, कहने का मतलब ये नहीं की वो पत्नी, प्रेमिका या फिर किसी और रूप से परे थी पर हां…उस मर्द के लिए वो बस एक औरत ही थी। मैं नहीं जानती कि दुनिया में कितने लोग ‘मर्द’ और ‘औरत’ शब्द को समझते हैं…कितने लोग उस अर्थ को समझते हैं, जो इन दो शब्दों में छिपे हैं…

औरत की बात करते हैं सबसे पहले…वो मर्द को आपना दोस्त भी समझती थी,जिसके साथ वो मनकही कहा और सुना करती थी। ज़िंदगी में आपको ऐसा कान चाहिए होता है, जो आपकी बात सुनकर समझ सके। वो मर्द को अपना प्रेमी भी समझती थी क्योंकि मर्द की बांहों की गिरफ्त में जाकर उसने कभी खुद को आज़ाद करना नहीं चाहा था। एक गुरु के रूप में भी उसने अपने मर्द को देखा ही था। हमेशा किसी के लिए रहना मुश्किल होता है और वो भी तब, जब आपको एक दिन सावन मिले तो दूसरे ही दिन पतझड़। जानती हूं कि मौसम तो बदलते रहते हैं पर औरत को वो मौसम हर दूसरे दिन बदलता मिलता था।

अब मर्द की बात करते हैं…एक बात तो आपको ऊपर ही पता चल गई होगी कि मर्द मौसम को हर दिन बदलने में माहिर था। वो खुद भी अपने आप को गिरगिट कहकर बुलाता था। उसका परिचय अगर उसी के शब्दों में कराऊं तो कमीना, बुरा, नॉट डिज़र्विंग…और भी पता नहीं क्या क्या…

अब आप इसे इत्तफाक ही कह सकते हैं कि दोनों मिल गए। काम भी ऐसा चुना, जहां आमना सामना तो होना ही था। दिल की धड़कन सबसे पहले औरत की चली। मर्द की चलती हो तो पता नहीं क्योंकि इज़हार औरत ने पहले किया था…खुद से भी औऱ मर्द से भी..

कई बार ये होता है कि हमें पता रहता है कि कुछ रास्ते किसी मंज़िल तक लेकर नहीं जाते…औरत को भी पता था पर वो मर्द को कभी समझा नहीं पाई कि उसे मंज़िल तो चाहिए ही नहीं थी। वो तो बस उस सफर को इंजॉय करना चाहती थी।

दिन बीतने लगे। औरत सिर्फ इस भाव से ही खुश थी कि उसने अपनी ज़िंदगी में किसी मर्द के होने के अहसास को महसूस किया है। इसके बदले में किसी भी चीज की उसे ख़्वाहिश नहीं थी। धीरे धीरे मर्द और औरत के बीच मर्द और औरत वाली ही बातचीत शुरु हुई। दोनों करीब भी आए…बहुत करीब। मौसम फिर बदला। इतने करीब होने के बाद औरत सुकूं में चली गई पर मर्द बेचैन हो गया। औरत ने समझाया कि परेशान मत हो…कुछ नहीं चाहिए उन पलों के बदले पर मर्द की बेचैनी वही जाने।

ज़िंदगी में औरत का होना या एक मर्द जिसको अपनी औरत कहे, वो बात शायद बहुत सारी समझ से परे होती है। या ये कहना कि ये मेरी ज़िंदगी का मर्द है, समझने के लिए समझ चाहिए। जाने कहां कमी आ रही थी, पर मर्द के कुछ भाव से औरत वंचित ही रही। औरत ने ये मान भी लिया कि शायद उसको ‘सब कुछ’ नहीं मिल पाएगा अपने मर्द से पर वो तो ‘कुछ’ पाकर ही खुश थी। सब कुछ तो उसको चाहिए भी नहीं था। पर मर्द की शांति को कोई कहां आज तक समझ पाया है। बात खत्म हुई संबंध को खत्म करके। वो संबंध, जो अनकहा था…बस चल रहा था। मर्द कुछ दे नहीं रहा था, पर वो औरत सब ले रही थी। औरत ने भी वादा कर दिया कि जो चाहोगे, वही होगा। वो हट गई अलग…हो गई दूर। शायद यहां भी मर्द की कोई बात अधूरी सी ही रह गई थी। प्रोजेक्ट के सिलसिले में सबके सामने किसी बात पर सुना दी खरी खोटी…बिना ग़लती के शायद सिर्फ मर्द ही सुना सकता है। औरत शांत ही रही। शायद उसकी समझ से मर्द को शांति से ही शांत किया जा सकता था। बोला तो उसने उस समय भी कुछ नहीं था, जब मर्द ने उससे सब कुछ ले लिया था और बोला उसने आज भी नहीं, जब मर्द ने उससे सब कुछ ले लिया। किसी मर्द की औरत बनना आसां नहीं, पर औरत को प्यार जैसा कुछ हो गया था। गीता, पुराण, उपनिषद…जाने कितनी बड़ी बड़ी ज्ञान से भरी किताबे पड़ी हुई हैं पर जो खुद के साथ होता है, उससे बड़ा ज्ञान कुछ नहीं..

आज मर्द की कमी महसूस कर औरत उदास है। मर्द ने एक बार फिर से मौसम बदला है…खामोशी के मौसम के साथ चुप रहने की बेला आई है…

shadowShapes

 

 

0 thoughts on “औरत और मर्द की कहानी…

  1. If I want to personally define a Man’s and a woman ‘s relationship… It would be clearly as similar as fish without water ….which I can see in the story above…very mature story though ….I find it more feminist >>

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