जाने क्यों?


उगती हुई, उठती हुई बेल

बारिश की बूंदों से भीगी हुई

लहरा लहरा कर जताती खुशी

नर्म पत्तों को पैदा कर

अपने सृजन पर इतराती

धूप बारिश थे सब साथी

तूफानों से नहीं था कोई मेल

खुद पर वो इतराती

खुद से ही इठलाती

बारिश में था सब कुछ भीगा

गीला तना…गीला पत्ता

जाने क्यों जड़ पर रह गया सूखा…

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