किक – 2


ज़रुरी होता है कभी कभी ज़िंदगी में कछ चीज़ों को किक मारना, वर्ना आपको आपकी ज़िंदगी में कभी भी किक नहीं मिलता…

इस सोच के साथ सायरा मृदुल को लेकर अंकुश से अलग हो गई। अलग होने का फैसला हो जाता है और दो इंसान एक दूसरे से अलग हो भी जाते हैं पर असली चैलेंज उसके बाद शुरु होता है। फिज़िकली, मैंटली, इमोशनली, इकोनॉमिकली…हर तरह से एक लय बनाना ज़िंदगी में मुश्किल है और जब साथी का साथ छूटता है, तो और भी मुश्किल। सायरा के सामने भी ये सारी दिक्कतें आईं। वो अपना सारा सामान लेकर हिना के पास आ गई। हिना उसकी बचपन की सहेली थी और किस्मत की बात कि दोनों एक ही शहर में थे। चलो, रहने का ठिकाना तो मिल ही गया था, एक एनजीओ में हिना की सिफारिश के बाद सायरा को नौकरी भी मिल गई।

वो सायरा का पहला दिन था उस एनजीओ में जाने का। मृदुल को उसने हिना के ही प्ले स्कूल में भेजा और घबराती हुई ऑफिस पहुंची। सायरा अपने आप में एक मजबूत लड़की थी पर हालात कितनी और किस तरह की घबराहट दे सकते हैं, ये समझने के लिए उन हालातों से गुज़रना होता है। संजय गुप्ता था सायरा का बॉस। पहले ही दिन से संजय की गिद्ध दृष्टि सायरा ने भांप ली थी पर वो नज़रअंदाज़ कर काम करती रही। भागना कोई सॉल्यूशन नहीं दे सकता और ऐसे गिद्ध हर जगह आंखें गड़ाए बैठे हैं, ये सायरा जानती थी।

‘तुम चाहो तो मैं तुम्हें घर छोड़ सकता हूं’, हार्दिक ने अपनी फाइल समेटते हुए सायरा से पूछा। उसी के ऑफिस में काम करता था इसलिए थोड़ी बहुत बातचीत दोनों में कभी कभी हुई थी। ‘थैंक्यू सो मच, मैं खुद चली जाउंगी’, सायरा ने मुस्कुरा कर कहा और निकल गई।

दिन ऐसे ही गुज़र रहे थे। सुबह मृदुल को प्ले स्कूल छोड़ना, ऑफिस आना और फिर शाम को घर चले जाना। एक दिन पता चला कि एक सेमिनार में हिस्सा लेने के लिए उस ऑफिस से 3 लोगों को चुना गया था, जिसमें सायरा भी एक थी। हिना ने काफी बोल बोल कर मृदुल को अपने पास ही रोक लिया था और सायरा अपनी टीम के साथ सेमिनार के लिए निकल गई थी।

सेमिनार में सबको ज़िंदगी की स्वतंत्रता के ऊपर बोलना था। सायरा काफी घबराई हुई थी। सेमिनार में जब वो बैठी तब हार्दिक उसके पास गया। सायरा आश्चर्य से देखने लगी। ‘अरे! आप यहां कैसे? आपका नाम तो देखा ही नहीं था मैंने’, कहकर सायरा ज़रा सा हिचकिचाई भी और मुस्कुराई भी। हार्दिक ने कहा कि ‘हां, छुट्टी थी तो सोचा कि यहीं आ कर देखूं कि क्या कुछ चल रहा है। तुम्हारा नंबर आ गया क्या बोलने का?’ सायरा कुछ कहती उससे पहले ही सायरा का नाम अनाउंस हो गया। सायरा मुस्कुरा के धड़कते दिल के साथ स्टेज पर गई।

‘ज़िंदगी…स्वतंत्रता…मुझे नहीं पता इसका मतलब। मैं नहीं जानती कि स्वतंत्र होकर जीना किसे कहते हैं, मुझे ये भी नहीं पता कि इक ज़िंदगी में आज़ादी मिलती कैसे है…शायद मैं कुछ नहीं जानती। जानती हूं तो बस इतना कि मैं जीना चाहती हूं। बाहें फैलाकर उड़ने का एहसास चाहती हूं। तलाक़ हुआ है मेरा और मेरी इक बच्ची भी है। लोगों की नज़रों में जो एक भूख सी दिखती है ना मुझे, उसे दूर करना चाहती हूं। कितना मुश्किल है एक तलाक़शुदा औरत के लिए समाज में रहना, उसे आसान करना चाहती हूं। मेरी लिए आज़ादी मेरी सोच में समाई है। सहारे के लिए बढ़ते हाथ मुझे टटोलना चाहते हैं, आंसू पोंछने के लिए जो हाथ आगे आते हैं वो गले लगाकर एक दबाव चाहते हैं। कुछ आंखें, कुछ शब्द, कुछ स्पर्श, कुछ बातें…भेदती हैं मेरे स्वरुप को। मैं उन सबसे आज़ाद करना चाहती हूं उन सबको, जो मेरी जैसी राह पर चल रहे हैं। मैं प्यार के जाल में फंसा कर एक रात की भोग वस्तु नहीं…मैं दोस्ती में उलझ कर पैसे देने वाली मशीन भी नहीं…बीवी की कमी को पूरी करने वाली वैश्या नहीं मैं और ना ही प्यार के नाम पर हमेशा ऐसे ही रहने वाली रखैल हूं…मैं बस मैं हूं…मुझे अपनाना हो तो मेरी तरह अपनाओ…मेरे लिए वही स्वतंत्रता है…मेरी ज़िंदगी की स्वतंत्रता…’

इतना कह कर सायरा शांत हो गई…सोच रही थी कि ये भला कौन सा मंच दिया उसे भगवान ने कि वो इतना कुछ बोल गई। तालियों की गड़गड़ाहट के साथ वो वापस अपनी कुर्सी के पास आकर बैठ गई। संजय नज़रें झुका कर बैठा था। समारोह के बाद डिनर हुआ। सब जब जाने लगे तो हार्दिक फिर से उसके पास आया – ‘क्या मैं छोड़ दूं तुम्हें?’ सायरा ने मुस्कुरा कर कहा कि ‘थैंक्स, मैं चली जाउंगी।‘

सायरा जब जाने लगी तो हार्दिक उसके समीप आया। ‘सुनो स्वीकार्य हो मुझे तुम और तुम्हारी आज़ादी। क्या हम साथ चल सकते हैं?’ सायरा हैरां सी उसको देख रही थी। हार्दिक ने फिर कहा – ‘ये मत कहना कि जानते ही कितना हो तुम मुझे क्योंकि मैं सब कुछ जानता हूं। हिना को भी…तुम अच्छी लगती हो, इसलिए साथ चलना चाहता हूं। हो सकता है कि मैं बहुत अच्छा ना लगूं तुम्हें, तो यकीं करो, मैं इस सोच की आज़ादी का भी सम्मान करूंगा और पीछे हट जाउंगा।‘ ये कहकर हार्दिक जाने लगा। सायरा भी कुछ सोचती हुई ऑटो पकड़ कर निकल गई।

‘हार्दिक, मुझे भी लगता है कि मैं साथ चल सकती हूं। तुमने बताया नहीं कि मेरे बेटे मृदुल को भी तुम्हारे साथ चलना अच्छा लगता है’ अगले दिन ऑफिस में आकर सायरा ने हार्दिक को ये सब कहा और मुस्कुराई। हार्दिक समझ गया था कि सायरा को मृदुल के साथ उसका खेलना पता चल चुका था। दोनों ने एक दूसरे की आंखों में देखा, मुस्कुराए और काम में लग गए।

आज दोनों के साथ को 5 साल बीत चुके हैं। सायरा को हार्दिक मिला और मृदुल को भी जान्ह्वी मिल गई। हां…प्यार ने जान्ह्वी के रुप में जन्म लिया था।

चारों खुश थे…चारों खुश हैं…सही वक्त पर एक ‘किक’, आपकी ज़िंदगी को एक सही ‘किक’ देता है…

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