कुचलती मासूमियत…


अरे! क्या हो गया? आज मेरी छुटकी मीठी का मुंह क्यों उतरा हुआ है? किसी ने कुछ कहा क्या? मैंने मीठी को गोद में बैठाते हुए पूछा।

मीठी शर्मा जी की बेटी है। शर्मा जी पिछले 10 साल से हमारे घर में किराएदार हैं। शादी करते ही वो अपनी पत्नी मालिनी के साथ हमारे घर रुम ढ़ूंढ़ते हुए आए थे। पिताजी ने मां को कहकर घर का पिछला हिस्सा किराए पर दे दिया था। शुरु से ही हम सबका उन दोनों के साथ अच्छा रिश्ता रहा था, पर जब शादी के 3 साल बाद मीठी पैदा हुई तो फिर मेरा तो पूरा खाली समय उधर ही गुज़रने लगा।

घर में मातम का माहौल तब छाया, जब एक दिन मालिनी जी रात को सोकर सुबह उठी ही नहीं और डाक्टर ने कह दिया – I am sorry. शर्मा जी के साथ साथ हमारा परिवार भी मातम में डूब उठा। मीठी का अब क्या होगा…कैसे होगा…क्या करेंगे अब आगे…दूसरी शादी कर लो…ऐसे ना जाने कितने ही सवाल शर्मा जी के कानों में जाने लगे।

कहते हैं कि वक्त हर दर्द को भर देता है…ग़लत कहते हैं लोग। कुछ दर्द कभी नहीं जाते। शर्मा जी ने खुद को काम में लगा लिया था और लोगों ने ये समझना शुरु कर दिया कि उनकी यादों ने अपना सफर अब पूरा कर लिया है। किसी को क्या पता कि यादों के गलियारों में बस एक ही याद रह गई है उनके…मालिनी जी की याद।

शर्मा जी ने जिस भी आवरण में खुद को ढंका हो, मीठी नहीं ढक पाई। वो नन्ही सी जान, जिसने ना मां को समझा, देखा, महसूस किया….उसे पूरी दुनिया समझनी थी। जब वो 6 साल की हुई तो शर्मा जी के परिवार वालों ने शादी पर जोर देना शुरु किया। मेरे पिताजी ने भी उनको बेटी का हवाला दिया। फिर ऐसे दबाव में जो होता है, वही हुआ। शर्मा जी की शादी हुई…दुबारा…गायत्री जी से।

गायत्री जी जब घर में आईं तो हम सब डरे थे। कैसी होंगी…कैसे सब संभालेंगी…मीठी को अपनी बेटी जैसा तो प्यार दे देंगी ना…। धीरे धीरे गायत्री जी ने वो सारे डर भी कम किए। अच्छे से उन्होंने घर भी संभाला और मीठी को भी।

आज मीठी को मैंने पहली बार ऐसे उदास देखा था। जाने क्यों, उसके लिए मेरे ममता के भाव हमेशा ही जागे रहते थे। क्या हुआ मेरी प्रिंसेस को? मैंने फिर से मीठी को चूमते हुए पूछा। तब जो मीठी ने बताया, वो किसी के भी खून को खौलाने के लिए काफी था।

चार दिन पहले मीठी के मामा यानि गायत्री जी के भाई आए थे। उम्र में गायत्री जी के ही बराबर थे। अपनी बेटी को हॉस्टल छोड़ने के लिए आए थे तो रास्ते में बहन से भी मिलने का सोचा। पता नहीं वो कौन सी नज़र थी, जो मीठी को एक छोटी बच्ची के रुप में ना देख सकी। गले लगाते समय उसको कसकर भींच देना…उसके नन्हे उभारों पर हाथ फेरना…उसके हाथों को इधर उधर ले जाना…उससे गंदे शब्दों को बुलवाना….और भी जाने क्या क्या करते थे वो, जो मीठी बता नहीं सकी…मुमकिन है कि बहुत कुछ तो उसे समझ भी नहीं आया होगा। आज सुबह भी उन्होंने कुछ ऐसा ही किया, जो शायद ज़्यादा हो गया था।

मैं चाहकर भी खुद को रोक नहीं पाई…सच कहूं तो मैं ऐसी किसी जगह खुद को रोकना भी नहीं चाहती। मैं गायत्री जी के पास गई और जो कुछ भी मन में आया, वो सब कह गई। उनके भाई भी वही बैठे थे। ज़ाहिर सी बात है कि उन्होंने अपने तरीके से उन सब बातों से इंकार भी किया, जो वो नज़रें बचा कर करते आ रहे थे।

मैं जानती हूं कि एक भाई बहन का रिश्ता आज खत्म सा हो गया होगा…पर एक मां बेटी के रिश्ते में मजबूती की उम्मीद भी है। सोच रही हूं उन बच्चों को जिन्हें समझ में भी नहीं आता होगा कि उनके साथ क्या हो रहा है और जिन्हें समझ में आता भी होगा, पता नहीं वो कह भी पाते होंगे या नहीं….एक कली के पत्तों को खिलने से पहले ही तोड़ दिया जाए तो बताने की ज़रुरत तो नहीं ना कि फिर क्या बचता है? नहीं चाहिए ये सब…सारे ही रिश्तों…कान खोल कर सुन लो…अब बस बहुत हुआ…नहीं चाहिए ऐसा कुछ भी, जो एक वजूद को खत्म करता हो…

तुम समझते हो क्या मेरी इस बात को जब मैं कहती हूं कि ये बेबसी के आलम बड़े अजीब से होते हैं…..

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