‘रॉकी हैंडसम’


बॉक्स ऑफिस पर आ गई है जॉन अब्राहम की ‘रॉकी हैंडसम’, जिसके डायरेक्टर हैं निशिकांत कामत। निशिकांत ने हिन्दी और मराठी में कई बेहतरीन फ़िल्में दी हैं। हाल ही में उनकी ‘दृश्यम’ सभी को बहुत पसंद आई थी। निशिकांत ने 2011 में जॉन के साथ ‘फोर्स’ फ़िल्म बनाई थी और एक बार फिर से वो जॉन को ‘रॉकी हैंडसम’ के रुप में लेकर आ गए हैं। ये फ़िल्म 2010 में आई कोरियन मूवी ‘the man from no where’ का रीमेक है, जो एक सुपरहिट थी। ‘रॉकी हैंडसम’ की कहानी रॉकी हैंडसम उर्फ जॉन और एक छोटी बच्ची नाओमी यानि दीया चलवाड के आस पास घूमती है, जो एक ही सोसाइटी में रहते हैं। नाओमी का किडनैप हो जाता है और हैंडसम उसको बचाने में लग जाता है। अब हैंडसम नाओमी को बचा पाता है या नहीं…और आखिर ये रॉकी हैंडसम है कौन, ये जानने के लिए आपको फ़िल्म देखनी पड़ेगी।
कहानी बिल्कुल भी नई नहीं है। ऐसी कहानी हम जाने कितनी बार पहले भी देख चुके हैं। रुक्षीदा यानि श्रुति हसन जॉन की बीवी बनी हैं, जो प्रेग्नेंट रहती हैं और तभी भड़ाम….सब ख़त्म..सोच कर देखिए…कितनी नई कहानी है ना। सच कहूं तो अगर जॉन का क्रेज़ ना हो तो बंदा फ़िल्म देखने के बाद 100 बार सोचेगा कि क्या था यार ये।? ये क्या कहानी थी? जॉन ऐसा क्यों हुआ? उसकी वाइफ को किसने मारा…कुछ भी साफ नहीं है। विलेन बहुत सारे हैं, पर कोई भी खुद को बहुत स्टैब्लिश नहीं कर पाया है।
एक्टिंग की बात करूं तो जॉन और दिया ने अच्छा काम किया है। जॉन को बोलना कम था, एक्शन ज़्यादा करना था और no doubt, वो उसमें बहुत अच्छे लग रहे हैं। अब इसमें शक नहीं कि he looks handosme, पर अब रॉकी नाम के पीछे क्या तुक था, वो मुझे नहीं पता। वैसे कबीर नाम अच्छा है। jokes apart, इस फिल्म में एक्शन करते हुए जॉन को आप इग्नोर नहीं कर सकते। पर साथ ही फिर एक बात और भी है, बंदा फिट है, बॉडी शॉडी बना रखी है..पर बॉस, एक्सप्रेशन कौन देगा? निशिकांत ने बड़ी चालाकी से जॉन को पूरी फ़िल्म में शायद सिर्फ 20 लाइन्स ही दी हैं बोलने के लिए। शायद उनको भी पता है कि जॉन क्या कर सकते हैं और क्या नहीं। almost last scene में नाओमी उसको पूछती है कि तुम हंस भी सकते हो…आज मैंने पहली बार तुम्हें हंसते हुए देखा है..हां..सही पकड़े हैं…मेरा भी प्वाइंट यही है कि क्या सिर्फ एक्शन और मस्कुलर बॉडी से कोई एक्टर बन सकता है…नहीं पता….शायद बॉलीवुड हीरो होने का ये फायदा होता हो। श्रुति के लिए कुछ ख़ास नहीं था…कुछ गानों में वो दिखी हैं, पर प्यारी लगी हैं। नाओमी के रोल में दीया ने अच्छी एक्टिंग की है। निशिकांत कामत विलेन बने हैं इस फिल्म में पर इस बार डायरेक्शन के साथ साथ एक्टिंग भी ऐंवी सी रही। पुलिस के रोल में शरद केलकर अच्छे और फ्रेश लगे हैं। इसके अलावा टेडी मौर्या और नथालिया कौर भी ठीक लगे हैं।
डायरेक्शन की बात करूं तो निशिकांत कामत ने रीमेक बनाकर एक बार फिर से ये साबित कर दिया कि बॉलीवुड फ़िल्में इस तरीके के रीमेक में बहुत नहीं चल पाती। कहानी फ़िल्म की इतनी कमज़ोर है कि आप चाहे जितना भी तीर चलाना चाहो, कुछ भी निशाने पर नहीं लगता। वैसे तो निशिकांत ने कोशिश की है कि डायरेक्शन वो फुल हॉलीवुड स्टाइल में करें। कैमरा एंगल और सिनेमेटोग्राफी के साथ-साथ एक्शन सीक्वेंस भी अच्छे ही हैं, पर वही ना, कहानी ही इतनी कमज़ोर है कि सब बेकार सा हो जाता है। गाने ठीक हैं फिल्म में। ‘रहनुमा’, ‘अल्फाज़ों की तरह’ और ‘रॉक द पार्टी’ सुनने में अच्छा लगता है।
और अब सवाल कि क्यों देखें फिल्म तो भईया लंबा वीकेंड है, अगर कहीं बाहर घूमने नहीं जा रहे तो कम से कम थियेटर तक ही एक राउंड लगा कर आ जाइये। अगर आप जॉन के फैन हैं, एक्शन्स अगर पसंद है आपको तो ये फ़िल्म देखिए, पर हां..बच्चों के बिना। बच्चा पार्टी को घर पर छोड़िए, पड़ोसी के घर छोड़िए…प्ले ज़ोन में छोड़िए…वो आपकी सरदर्दी है, पर हां, ये फ़िल्म बच्चों के हिसाब से लाउड है और अगर आपको लगता है कि छोड़ ना, अब कौन जाकर वहीं मार धाड़ देखेगा, या अगर आपने अभी हाल फिलहाल ही ‘कपूर एंड संस’ देखी है, तो टेस्ट मत बेकार किजीए। घर पर ही फैमिली के साथ चिल मारिए। इस फ़िल्म को मिलते हैं 2 स्टार्स

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