पहली मुलाकात


सुनो ना,

क्या आज भी तुम्हें याद है

हमारी वो पहली मुलाकात?

क्या आज भी

गुदगुदाती हैं वो स्मृतियां तुम्हें?

 

हां प्रिये,

सब कुछ रुका था उस पल में

आते जाते लोग

चलती ट्रेन…घूमता पंखा

हवा भी शांत थी और चिड़िया भी

कहीं कोई आवाज़ नहीं…

अगर कुछ चल रहा था,

तो वो था हमरा मन…

तुम्हारी उस तेज़ बढ़ती धड़कन को

मैं आज भी सुन सकता हूं

 

सुनो ना,

आज के दिन को कुछ नाम दे दो

सार्थक कर दो उस मुलाकात को

 

प्रिये,

उस मुलाकात को कोई नाम ना दो

वो जो भी था, हमारा था

किसी एक पल पर सिर्फ हमारा हक हो,

भला कहां हो पाता है ऐसा?

तुम्हें पता तो है ना,

उसी एक मुलाकात में

गुज़र रही है अब ज़िंदगी….

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