‘पिंक’ रिव्यू


पिंक रंग कोमल तो हो सकता है पर वो कच्चा या कमज़ोर नहीं और किसी भी लड़की के ‘नो’ का मतलब ‘नो’ ही होता है, इसके अतिरिक्त कुछ और नहीं, इसी भाव के साथ बॉक्स ऑफ़िस पर आ चुकी है अनिरुद्ध रॉय चौधरी की ‘पिंक’ । अमिताभ बच्चन, तापसी पन्नू, कीर्ति कुल्हाड़ी, एंड्रिया तेरियांग,अंगद बेदी और पीयूष मिश्रा मुख्य भूमिका में हैं। डायरेक्टर के रुप में ये अनिरुद्ध की पहली बॉलीवुड फ़िल्म है। शुजीत सरकार हैं फ़िल्म के प्रोड्यूर, तो किसी गफ़लत में मत रहिएगा कि फ़िल्म उन्होंने डायरेक्ट की है।

कहानी दिल्ली की तीन लड़कियों की है। मीनल अरोड़ा (तापसी पन्नू), फ़लक अली (कीर्ती कुल्हाड़ी), और एंड्रिया(एंड्रिया तेरियांग) रेन्ट पर एक फ्लैट लेकर रहती हैं। मीनल दिल्ली के करोलबाग की रहने वाली हैं, फ़लक लखनऊ से हैं और एंड्रिया मेघालय से हैं। एक रात उनके साथ होता है एक हादसा जिसमें मीनल राजवीर (अंगद) के सर पर बोतल मारती है और मामला पहुंचता है कोर्ट तक। तीनों लड़कियों का केस लड़ते हैं दीपक सहगल यानि अमिताभ बच्चन और लड़कों की तरफ से वकील बनते हैं पीयूष मिश्रा। आखिर उस रात हुआ क्या था, ये जानने के लिए फ़िल्म देखिए।

फ़िल्म के राइटर रितेश शाह ने कहानी बहुत कसी हुई लिखी है। समाज में लड़के और लड़कियों के बीच जो दकियानुसी दीवार है, उसे गिराने की कोशिश की गई है। समाज में हर कोई एक लड़की को उसका कैरेक्टर सर्टिफिकेट देकर चला जाता है। कभी कुछ हो जाए तो सुनने में आता है कि ‘ऐसी लड़कियों’ के साथ तो ये होता ही है। लड़कों द्वारा लड़कियों के किसी भी व्यवहार को देखकर खुद ही कुछ अज़्यूम कर लेना और उसके बाद अपनी मनचाहे भाव को अंजाम देने की कोशिश करना, इस बदसूरत सोच को रितेश ने बखूबी अपने कलम से उकेरा है।

एक्टिंग में सभी ने कमाल किया है। अमिताभ ने इस फ़िल्म के लिए 5 मिनट में हां की थी और बताने की ज़रुरत नहीं कि वो उम्र के इस पड़ाव पर भी नए नए एक्सपेरिमेंट के लिए तैयार हैं। अपने किरदार को उन्होंने अपने एक्शन और अपनी आवाज़ से एक नए मुकाम तक पहुंचाया है। कोर्ट सीन में उनके तर्कों को सुनना काफी अच्छा लगता है। पीयूष मिश्रा की एक्टिंग भी जोरदार है। एक वकील के रोल में आप उनसे नफरत करेंगे और यही उनकी की ख़ासियत भी है। तापसी पन्नू का काम भी अच्छा है। इस फ़िल्म से उन्हें एक अलग ऊंचाई ज़रुर मिलेगी। तापसी ने डर और गुस्से को काफी अच्छे तरीके से दिखाया है। कीर्ति और एंड्रिया भी अपने रोल में जमे हैं। अंगद ने अपने किरदार के हिसाब से बहुत ही अच्छे हावभाव दिए हैं।

अनिरुद्ध का डायरेक्शन बहुत अच्छा है। बांग्ला में उन्होंने ‘अनुरणन’ और ‘अंतहीन’ जैसी फ़िल्में डायरेक्ट की हैं और इसके लिए नेशनल अवॉर्ड भी पाया है। ‘पिंक’ फ़िल्म के माध्यम से उन्होंने समाज की बरसों से जमी घटिया सोच को दिखाने की कोशिश की है, जिसमें वो कामयाब भी हुए हैं। कहानी भले ही दिल्ली की है, पर ऐसी वर्किंग वुमन को हम हर शहर में देख सकते हैं, जो ऐसी सोच और ऐसे हालात का सामना करती हैं। पहनने, ओढ़ने, हंसने, पार्टी में जाने से लड़कियों का कैरेक्टर सर्टिफिकेट बन जाता है और अनिरुद्ध ने अपनी फ़िल्म में इसके प्रति अपना विरोध दर्ज करवाया है और वो भी काफी सटीक तरीके से। अमिताभ के माध्यम से तंजिया लहज़े में लड़कियों के लिए सेफ्टी रुल्स बताकर अनिरुद्ध ने अपनी बात कह दी है। ‘नॉर्थ ईस्ट’ की लड़कियों के साथ हो रहे अभद्र व्यवहार की तरफ भी बहुत अच्छे से इशारा किया गया है। रात में हुई घटना का सस्पेंस अनिरुद्ध ने फ़िल्म के अंत तक बनाकर रखा है।

फ़िल्म का म्यूज़िक भी अच्छा है, जिसे शांतनु मोइत्रा ने दिया है। सारे गाने अच्छे हैं, ख़ासकर ‘कारी कारी’ वाला गाना, जो फ़िल्म के सीन्स को मजबूत बनाता है।

अब सवाल कि क्यों देखें, तो कहानी सीधी सरल है और समाज की सोच पर एक तमाचा है। आस पास की कहानी ही है, जिसे हम हर रोज़ देखते हैं, बस समझते नहीं हैं। ‘ना सिर्फ एक शब्द’ नहीं है, एक पूरा वाक्य है अपने आप में, इसे किसी व्याख्या की ज़रुरत नहीं है। ‘No’Means No, चाहे वो आपकी गर्लफ्रेंड हो, आपकी पत्नी हो या फिर कोई सेक्स वर्कर हो’- इस सोच को समझने के लिए फ़िल्म ज़रुर देखिए।

इस फ़िल्म को मिलते हैं 4 स्टार्स।

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