संवरा रिश्ता


शाम हो चुकी थी। घड़ी ने छः बजा दिए थे। शाल्विका भी अपना समान बाँध कर बस निकलने के लिए तैयार ही बैठी थी। बाहर कार के रुकने की आवाज़ आई। टैक्सी आ गई होगी, ऐसा सोच कर शाल्विका अपने सामान के साथ बाहर निकली। देखा तो ऋषित भी अपनी कार से बाहर निकल रहा था। शाल्विका आश्चर्य में थी। कभी रात के 10 बजे से पहले ऋषित ने घर की घंटी नहीं बजाई थी। फिर भला आज क्या हुआ? शाल्विका कुछ बोलती, उससे पहले ही ऋषित उसकी तरफ बढ़ा।  “कहीं जा रही हो क्या?” ऋषित ने शाल्विका के सामान को देखकर सवाल किया।

शाल्विका कुछ बोलती उससे पहले ही ऋषित ने पास आकर उसका हाथ थामा।

“क्या हुआ? कहां जा रही हो? वो भी बिना बताए? नहीं आता अभी तो? कुछ हुआ क्या?” ऋषित ने सवालों की लड़ी लगा दी।

‘तुमको क्या हुआ? आज इस समय घर पर? तबीयत ठीक है तुम्हारी? -शाल्विका ने अपना पर्स संभालते हुए ऋषित से पूछा।

ऋषित ने शाल्विका की बातों को नज़रअंदाज़ करते हुए फिर अपनी बात कही- ‘कहां जा रही हो? नहीं आता तो?’

शाल्विका ने कुछ जवाब ना देते हुए सड़क की तरफ देखा कि अब तक टैक्सी आई क्यों नहीं?

ऋषित कुछ देर शाल्विका को खड़ा देखता रहा और फिर कुछ सोचकर बोला कि ‘शर्मा जी ने मुझे फोन करके बताया था कि तुमने उन्हें टैक्सी के लिए बोला है। तुम्हारा फोन नहीं लग रहा था इसलिए उन्होंने मुझे फोन करके कहा कि आज किसी भी टैक्सी का इंतज़ाम नहीं हो पाएगा। माफी मांगी है उन्होंने।’

शाल्विका ने गुस्से में ऋषित को देखा और फोन पर किसी दूसरी टैक्सी को बुक करने की कोशिश करने लगी।

‘मैं तुम्हें छोड़ दूंगा, जहां भी तुम्हें जाना है। बस एक बार अंदर चलकर मुझसे बात कर लो।’- ऋषित ने बहुत धीरे से शाल्विका को देखते हुए कहा। शाल्विका ने कोई जवाब नहीं दिया और वो घर के अंदर घुस गई। ऋषित भी उसका सामान लेकर अंदर आ गया।

‘क्या हुआ?’ – ऋषित ने फिर से सवाल दोहराया।

शाल्विका ने शिकायत वाली नज़रों के साथ कुछ हैरानी से ऋषित को देखा जैसे पूछ रही हो कि क्या अब भी तुम्हें समझ नहीं आया कि क्या हुआ?

ऋषित ने फिर से चुप्पी तोड़ी – ‘ क्या कल रात की बात का नतीजा है ये?

शाल्विका ने अब भी ऋषित की किसी बात का कोई जवाब नहीं दिया।

‘देखो, जो भी जैसा था, मैंने तुम्हारे सामने अपनी बातें रख दी थी पर अगर उसका सिला ये है कि तुम मुझे और इस घर को छोड़कर जाने का सोच रही हो, तो फिर तो मैं कभी तुमसे अपनी दिल की बातें नहीं कह पाउंगा। मुझे वक्त लगा ये सब कहने में, पर तुमने ज़रा भी देर नहीं की मुझे छोड़ कर जाने का फैसला लेने में।’ – ऋषित ये सब कहते कहते रुक गया, जैसे उसके शब्द उसके गले में ही फंस गए हो।

शादी के पांच साल बाद ऋषित ने ना जाने क्या सोच कर अपना अतीत शाल्विका से बांटा था। उसे मधुरिमा के बारे में बताया था। मधुरिमा, जिसे ऋषित ने बेहद चाहा, पर उसके रिश्ते उसके साथ कभी मधुर नहीं बन पाए और ऋषित की शादी हो गई शाल्विका के साथ। अब शादी के पांच साल बाद जब मधुरिमा ने ऋषित को फोन किया तो ऋषित ने सब कुछ शाल्विका के साथ शेयर किया। बस, यही बात शाल्विका के दिमाग में बैठ गई और उसने घर छोड़ कर जाने का मन बना लिया। इस पांच साल में ऋषित ने शाल्विका को बेहद प्यार किया। प्यार में अगर दुनिया जन्नत सी लगती है तो हां, शाल्विका ने वो दुनिया देखी और अब तक वो देख भी रही थी।

‘मैं भी अब किसी बीहड़ जंगल में, किसी पेड़ की डाली पर उस चाहत को टांग कर भूल जाना चाहती हूं, जो कभी तुमसे हुई। तुम जिस सोच में घिरे बैठे हो, उस सोच की आगोश में आकर दम घुटने से मेरी मौत ही होगी।’ – शाल्विका ने अपने आंसूओं पर काबू पाने की नाकामयाब कोशिश करते हुए कहा।

ऋषित हैरान था, शायद उसे शाल्विका से इस नासमझी की उम्मीद नहीं थी। उसने फिर एक कोशिश की – ‘ देखो, अतीत हमेशा व्यतीत होता है। मधुरिमा मेरा कल थी, तुम आज हो।’

शाल्विका इस बात को सुनकर हंस पड़ी जैसे ऋषित ने जाने कितना घिसा पिटा डायलॉग मारा हो। शाल्विका ने अपना ब्रह्मास्त्र छोड़ा – ‘ तुमने कभी मुझे प्यार किया ही नहीं। तुम्हारा प्यार सिर्फ बिस्तर तक ही सीमित है। खुशी की स्थिति में हो या दुख में या फिर गुस्से में ही क्यों ना हो, तुम्हारे सारे भाव एक ही रुप में निकलते हैं।’

ऋषित शायद इस बात के लिए तैयार नहीं था। ये बात आ कहां से गई, या इस समय इस बात का क्या मतलब है, ये बात उसे समझ नहीं आई, पर वो शांत ही रहा। शायद समझदार था इसीलिए जानता था कि एक औरत गुस्से में कुछ भी बोल सकती है और उसकी बात का वर्तमान बात से कोई मतलब हो, ऐसा ज़रुरी भी नहीं।

‘शाल्विका’- ऋषित ने धीरे से अपनी पत्नी का नाम पुकारा। ‘ क्या तुम्हारे मन में मुझे खोने का डर समाया है? क्या तुम्हें लगता है कि मैं तुम्हें छोड़ दूंगा?’

‘सब कहते हैं कि भगवान ने औरतों को कमज़ोर बनाया है पर एक मर्द की असुरक्षा की भावना को कोई क्यों नही देखता? हां, वो तुम्हारा डर ही है, तुम्हारी असुरक्षा का भाव ही है, जो मुझ पर इस तरह बरसता है, जो तुम्हें इस कदर बदसूरत बनाता है। तुम मुझे खोने से डरते रहे, अब इससे ज़्यादा तुम्हें क्या पाउंगी मैं? पर इस डर ने, इस चाहत ने या यूं कह लेने दो कि इस भूख ने जो भाव मुझे दिए हैं, अब वो चुभते हैं। देखो, कैसे मेरा दर्द रिसता हुआ इस रिश्ते में भी घुल सा गया है और तुम कहते हो कि मैं तुम्हें खोने से डरती हूं।’ शाल्विका ने एक ही सांस में ऋषित की बातों का जवाब दे दिया। उसे खुद समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या बोले जा रही है, पर ज़िद भी तो एक चीज़ होती ही है ना।

साथ रहने पर अपने साथी की सोच, उसके रिएक्शन का आइडिया मिल ही जाता है और ऋषित भी इस समय अपनी बीवी को समझ पा रहा था। वो उठकर आया और शाल्विका के हाथों को अपने हाथों में लेकर सहलाने लगा।

‘तुम्हें पता है कि मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं। एक मर्द हूं, सिर्फ इस नाते मुझे बुरा साबित मत करो। जिस बात पर तुम भड़क रही हो, वो मेरा कल था, जिसका मेरे आज से कोई लेना देना नहीं है। संभव है कि तुम्हारा भी कोई कल हो, मैंने कभी पूछा नहीं…इसलिए नहीं कि पूछ नहीं सकता था बल्कि इसलिए कि जानना नहीं चाहता था क्योंकि तुम्हारा कल चाहे जिसके साथ जुड़ा हो, आज सिर्फ मेरे साथ है। तुम घर छोड़कर जाना चाहती हो, पर उसके बाद क्या? गुस्से में घर छोड़कर जाना आसान है, मेरे लिए भी…पर हमने ये रिश्ता संवारने के लिए बनाया है, बिखेरने के लिए नहीं। तुम्हारे गुस्से पर मेरा गुस्सा आना चुटकी बजाने जैसा था, आसान था तुम्हें जाने देना, तुम्हें यूं ना समझाना, पर उसके बाद क्या? तुम्हें लगता है कि मेरे हर भाव बिस्तर पर ही निकलते हैं, तो क्या सच में ऐसा है? मैं एक मर्द हूं और मेरे-तुम्हारे बीच में भावों को दर्शाने के तरीके का अंतर हमेशा ही रहेगा, पर उसको इस तरह लेकर मुझे बेइज़्ज़ती का एहसास करवाने का मिशन तुम्हें भी सुख नहीं देगा। बहुत सारी बातें होती हैं मर्दों के बारे में कि उनका नाड़ा ढीला होता है या नाभी के ऊपर की भूख से ज़्यादा नाभी के नीचे की भूख होती है, पर सबको एक ही तराजू में मत तौलो। क्या इन 5 सालों में तुम्हें कभी भी इस बात का एहसास हुआ है कि मैं तुमसे प्यार नहीं करता या उसमें कमी आई है, या सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण बात ये कि मेरा चक्कर बाहर किसी के साथ चल रहा है? शाल्विका, 5 साल काफी होता है अपनी बीवी से बोर होने के लिए या यूं कहूं कि उसके जिस्म से बोर होने के लिए। क्या तुम्हें किसी पल इस बात का एहसास हुआ कि मेरी चाहत में ज़रा भी कमी आई हो? मर्द तो वैसे बदनाम है ही कि वो कुछ नहीं संभालता, सब औरतों को ही करना होता है पर शाल्विका, मैं तुम्हारी ज़िंदगी का मर्द हूं। मैं संभालना चाहता हूं…तुम्हें, मुझे और इस रिश्ते को….हमेशा ही।

ऋषित की बातें सुनकर शाल्विका की ऑंखों में आंसू आ गए थे। उसके मन में आया कि अभी ऋषित से वो एक बेल की तरह लिपट जाए, पर शायद मन पर ग्लानि का बोझ था या जबरदस्ती की इस ज़िरह का दुख, वो ख़ामोशी के साथ सिसकती रही। ऋषित ने आगे बढ़कर उसको कंधे से उठाया और गले से लगा लिया।

शाल्विका के मुंह से शब्द नहीं निकले पर ऑंखों से आंसू बहुत बहे और साथ ही बहा बहुत कुछ, जो एक रिश्ते को जाम कर रहा था। टूटना, चटकना, बिखरना….सब आसान है….बहुत ही आसान है, पर उसको संवारना ज़रा मुश्किल है।

मुमकिन था कि सब बिखर जाता, जो कि सबसे आसान भी है पर वो नहीं हुआ क्योंकि इसी सामाज के एक मर्द ने संभाल लिया था….अपना प्यार, अपना रिश्ता और अपनी दुनिया…

2 thoughts on “संवरा रिश्ता

  1. पति और पत्नी दोनों ही अगर एक दूसरे को समझ जाये और गलतियों को भूल जाये तो जिंदगी जन्नत सी हसीन हो जाये।

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