‘शिवाय’ रिव्यू


जिस फ़िल्म ने अजय देवगन को एक एक्टर के साथ साथ प्रोड्यूसर, डायरेक्टर और राइटर भी बना दिया, वो फ़िल्म ‘शिवाय’ बॉक्सऑफिस पर रिलीज़ हो चुकी है। अजय देवगन का ड्रीम प्रोजेक्ट, सबसे बड़ा सपना, अजय ने जिसके लिए दिन-रात एक कर दिए, वो फ़िल्म ‘शिवाय’ ही है। कह सकते हैं कि अब तक अजय को अपनी जिस फ़िल्म से सबसे ज़्यादा लगाव रहा, जिसके लिए उन्होंने वो तमाम कोशिशें कर डाली, जो इससे पहले उन्होंने कभी नहीं की थी, यहां तक कि किस करते हुए भी अजय को पर्दे पर देख ही लिया गया, जिस फ़िल्म के लिए उन्होंने पैसे को पानी की तरह बहाया, ‘शिवाय’ वही फ़िल्म है।
कहानी है शिवाय यानि अजय देवगन की, जो हिमालय पर ट्रैकिंग का काम करता है और उसकी 8 साल की बेटी की। कुछ परिस्थितियों में पड़कर दोनों बुल्गारिया जाते हैं और वहां होता है एक हादसा, जिसको जानने के लिए आपको देखनी पड़ेगी फ़िल्म।
अगर आपने भी ऐसा कुछ सुना था कि ‘शिवाय’ की कहानी ‘मेलुहा’ या शिव के जीवन पर आधारित है, तो बता दूं कि ये ग़लत बात आपके कानों में पड़ी। कहानी एक पिता और बेटी की है, उनके इमोशन्स की है और इसके साथ ही चाइल्ड ट्रैफिकिंग के मुद्दे को भी फ़िल्म में उठाया गया है। पहले पार्ट में काफी देर तक कहानी बांध नहीं पाती। दूसरा पार्ट फिर भी इंट्रेस्टिंग लगता है। डायलॉग्स कुछ ख़ास नहीं हैं। अगर किसी किसी डायलॉग पर आपको हंसी भी आ जाए तो कोई हैरानी की बात नहीं होगी। संदीप श्रीवास्तव ने कहीं कहीं कहानी को बोझिल सा बना दिया है, जो फ़िल्म देखते हुए काफी अखरता है।
इस फ़िल्म में अजय ने अपने आप को इतने हिस्सों में बांट लिया था कि कहीं कहीं उनकी एक्टिंग भी ऐवीं सी लगती है, पर फिर भी एक्टिंग के नाम पर सिर्फ उनको ही देखा जा सकता है। अच्छे एक्शन्स किए हैं उन्होंने। उनकी आंखें बेहद खूबसूरत हैं और इस फ़िल्म में उन्होंने उसका बखूबी इस्तेमाल भी किया है। गिरीश कर्नाड का काम भी अच्छा है, पर उनका पार्ट इतना कम है कि उनके टैलेंट को बहुत अच्छे से भुनाया नहीं गया। बेटी के रोल में गौरा यानि एबिगेल एम्स का काम भी अच्छा है। साएशा सहगल को फ़िल्म में स्पेस मिला है, पर वो बहुत कुछ जादू नहीं चला पाई हैं। वोल्गा उर्फ एरिका कार ने सिर्फ खूबसूरत दिखने का ही काम किया है। वीरदास छोटे से रोल में ठीक लगे हैं।
‘राजू चाचा’, ‘यू मी और हम’ के बाद अजय देवगन ने इस फ़िल्म से डायरेक्शन की तरफ फिर से कदाम बढ़ाया है। फ़िल्म के स्टंट, लोकेशन्स और सिनेमेटोग्राफी काफी अच्छी है। कई सीन्स में मुंह से ‘wow’ भी निकलता है। अजय ने खुद को एक्शन हीरो के रुप में फिर से स्थापित भी किया है, पर काश एक अच्छी फ़िल्म के लिए सिर्फ ये सब ही ज़रुरी होता। कई जगह फ़िल्म खींची हुई सी लगती है, जैसे जबरदस्ती स्ट्रैच किया हो। ‘ तेरे नाल इश्क़’ गाने में साएशा को बाथ टब में नहाते दिखाया गया है, और वो क्यों दिखाया गया है, नहीं पता। अगर फ़िल्म को म्यूट करके देखा जाए तो वो बहुत ही खूबसूरत दिखेगी, पर आवाज़ आते के साथ ही वो भावहीन संवाद और कमज़ोर कहानी आपका मूड ऑफ कर सकती है।
फ़िल्म का टाइटिल ट्रैक ‘बोलो हर हर’ सुनने में अच्छा है। इसके अलावा ‘दरख़ास्त’ भी अच्छा गाना है। अगर आपको एक्शन पसंद है, अगर आप भी अजय देवगन की इस मेहनत को देखना चाहते हैं या आप उन्हें पसंद करते हैं, अगर आप असीम बजाज की टैलेंटेड सिनेमेटोग्राफी को देखना चाहते हैं तो फ़िल्म देखी जा सकती है, पर हां, फ़िल्म में दिमाग या ज़्यादा उम्मीद लगाएंगे तो दुखी होंगे।

इस फ़िल्म को मिलते हैं 2.5 स्टार्स।

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