‘दंगल’ फ़िल्म रिव्यू


हानिकारक बापू के साथ धाकड़ ‘दंगल’ आ चुकी है बॉक्स ऑफिस पर। नितेश तिवारी के डायरेक्शन में बनी इस फ़िल्म में आमिर ख़ान, साक्षी तंवर, फातिमा सना शेख़, सान्या मल्होत्रा, गिरीश कुलकर्णी, जायरा वसीम और सुहानी भटनागर लीड रोल में हैं। फ़िल्म रेसलर महावीर फोगाट और उनकी बेटियां गीता-बबीता के जीवन पर आधारित है।

भवानी ज़िले के बिलाली गांव की 1988 की कहानी को ‘दंगल’ में दिखाया गया है। महावीर फोगाट यानि आमिर ख़ान रेसलिंग में स्वर्ण पदक लाना चाहता है पर सामाजिक दिक्कतों की वजह से उसका सपना अधूरा रह जाता है। उसे लगता है कि उसका ये सपना एक लड़का ही पूरा कर सकता है और इसी ख़्वाहिश में उसे हो जाती हैं 4 लड़कियां। कुछ समय बाद उसे महसूस होता है कि उसकी 2 बेटियों, गीता-बबीता के अंदर रेसलर बनने के गुण मौजूद हैं और वो कहता है कि ‘म्हारी छोरियां छोरों से कम हैं के?’ समाज की परवाह किए बिना महावीर फोगाट अपनी बेटियों पर जी तोड़ मेहनत करता है। मेहनत का नतीजा जानने के लिए फ़िल्म देखिए और ज़रुर देखिए।

नितेश तिवारी ने इस फ़िल्म में हर उस चीज़ का ध्यान रखा है, जो किसी भी फ़िल्म को हिट करवाने के लिए चाहिए होती है। महावीर फोगाट और गीता-बबीता की ऐतिहासिक जीत को अपने ट्रीटमेंट से उन्होंने अलग ही रुप दे दिया है, जो आपकी ऑंखों में आंसू भी लेकर आता है तो आपको हंसाता भी है। हरियाणा में लड़के-लड़कियों के भेदभाव को हर कोई जानता है। नितेश ने उन सारी सामाजिक परेशानियों को, उन चुनौतियों को बखूबी दिखाया है। गीता-बबीता के बचपन को नितेश ने पूरी तरह ह्यूमर से भरा है, जिसको हरियाणवी टोन में सुनना मज़ेदार है। इसके अलावा लड़के पैदा करने के अलग अलग टोटकों को देखना भी मज़ेदार है। शहर में जाकर मन का भटकाव, बाप-बेटी के बीच दिमागी लड़ाई…हर छोटी से छोटी बात का नितेश ने ध्यान रखा, जोतारीफ के काबिल है। फ़िल्म का फर्स्ट हाफ पूरे तरीके से बांध कर रखता है। दूसरा पार्ट स्पोर्ट्स से भरा है, पर फिर भी वो आपका ध्यान भटकने नहीं देगा। कुश्ती की हर बारीक चीज़ को फ़िल्म में भी बेहद बारीकी से दिखाया गया है।

मुकेश छाबड़ा की कास्टिंग कमाल की है। सभी ने एक से बढ़कर एक एक्टिंग की है। आमिर खान की एक्टिंग के बारे में कुछ भी कहने का कोई मतलब नहीं। वो हर कसौटी से ऊपर जा चुके हैं। वजन के साथ जो उन्होंने खेला है, वो अपने आप में ही एक अलग स्पोर्ट लगता है। पिता और कोच की भूमिका को उन्होंने बेमिसाल तरीके से निभाया है। सपने को पूरा करने की कसक को उन्होंने अपने हाव भाव से बहुत ही अच्छे तरीके से दिखाया है। हरियाणवी भाषा को भी उन्होंने काफी अच्छे से पकड़ा है। गीता-बबीता के बचपन का रोल ज़ायरा वसीम और सुहानी भटनागर ने निभाया है, जो कमाल का है। दोनों की मासूमियत, दोनों के बोलने का स्टाइल जहां आपको हंसाता है, वही उनसे दिल को पूरी तरह जोड़ भी देता है। गीता-बबीता के बड़े रोल को फातिमा सना शेख और सान्या मल्होत्रा ने निभाया है और इन दोनों का काम भी बेजोड़ है। फातिमा के कुश्ती वाले सीन्स इतने स्वाभाविक लगते हैं कि भ्रम होता है कि कहीं वो सचमुच की रेसलर तो नहीं हैं। फ़िल्म के अंत में ये फ़िल्म भी आमिर से ज़्यादा फातिमा की लग सकती है। साक्षी तंवर, अपार शक्ति खुराना और गिरीश कुलकर्णी का काम भी अच्छा है।

फ़िल्म का म्यूज़िक कहानी के अनुसार ही है। अमिताभ भट्टाचार्य ने कहानी के अनुसार परफेक्ट लिरिक्स लिखे हैं। ‘हानिकारक बापू’, ‘धाकड़ है’ सुनने में अच्छे लगते हैं। बैकग्राउंड स्कोर कहानी के साथ बहुत ही फिट बैठता है।

फ़िल्म को मिस करने की सेचिएगा भी मत। गोल्ड मैडल तो छोरियां भी ला सकती हैं, इसे समझना ज़रुरी है, जो फ़िल्म में खूबसूरती के साथ समझाया गया है। फ़िल्म ढेरों अवॉर्ड बटोर ले, तो कोई आश्चर्य भी नहीं। बेहद उम्दा फ़िल्म है, पूरे परिवार के साथ जाकर ज़रुर देखें।

इस फ़िल्म को मिलते हैं 4.5 स्टार्स।

3 thoughts on “‘दंगल’ फ़िल्म रिव्यू

Leave a Reply to Bindu Cancel reply

Your email address will not be published.