नाज़


पाषाण सा दिल था उसका, जो सिर्फ प्रेम की आगोश में ही पिघल सकता था। हुआ भी वही…प्रेम मिला और नाज़ पिघल गई। प्रेम दुनिया की सबसे ख़ूबसूरत चीज़ है, हो जाए तो बस कर ही लेना चाहिए। जोड़ घटाव में उलझ कर उससे मुँह नहीं मोड़ना चाहिए या उससे दूर नहीं भागना चाहिए। नाज़ ने भी ना ही मुँह मोड़ा और ना ही वो भागी। वो तो बस उस प्रेम की आग़ोश में लिपट के ख़ुद के अंदर जमी कुछ कड़वी सोच को पिघलाती रही।

बिस्तर के चादर की सिलवटों को दूर करते हुए नाज़ के चेहरे पे एक सुकून होता था, जैसे ज़िंदगी की सिलवटें साफ़ कर रही हो। छोटी सी तो उम्र होती है और उसमें एक ख़ूबसूरत कहानी को गढ़ना बहुत आसान सा तो काम नहीं। ख़्वाहिशें दफ़न होती रहती हैं कई सारी। दिन के पहर में वो रेत जैसी गरम हो जाती हैं और रात में कुछ वैसी ठंडी, जैसे बरसों से ऐसी ही हो। नाज़ की भी जाने कितनी ही तमन्नाएँ मरी थीं, दबी थीं, कुचली गई थीं….पर अब…उफ़्फ़, ये प्रेम का आग़ोश जैसे कोई जादुई चीज़, जो सबको जीवन दे सकता है। नाज़ की ख़्वाहिशों, उसकी चाहतों, उसकी सोच को अब जैसे जीवन मिल गया हो, मानो जैसे एक चेहरा मिल गया हो….

अगर बोल कर ही अपनी ख़ुशी बतानी पड़े, तो समझो कि कहीं कुछ अधूरा रह गया है। नाज़ को इस मामले में शब्दों की ज़रूरत कभी नहीं पड़ी। उसकी ख़ुशी उसके हर हाव भाव से झलकती रही। उसके प्यार ने उसे पूरा प्यार दिया। अपने हाथों से जूते मोज़े तक पहनाए। कोर काग़ज़ सी ज़िंदगी पे प्यार की ख़ूबसूरत कहानी। हर हर्फ़ से सिर्फ़ प्यार ही झलकता।

नाज़ ने ज़िंदगी के कई चेहरे देखे थे। टेढ़े मेढ़े, ख़ूबसूरत बदसूरत…हर तरह के। अभी उसकी नज़रें एक ख़ूबसूरत नज़ारा देख रही हैं। ज़िंदगी में कुछ लम्हे भी सुंदर दिखे तो फिर हर नाज़ को ख़ुद पे नाज़ करने का हक़ बनता है…

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