‘रईस’ रिव्यू


‘मॉं कहती थी कि कोई भी धंधा छोटा या बड़ा नहीं होता और धंधे से बड़ा कोई धर्म नहीं होता’ – मॉं के इसी ज्ञान के साथ, राहुल ढोलकिया के डायरेक्शन में बनी फ़िल्म ‘रईस’ बॉक्स ऑफिस पर आ चुकी है । कुर्ता पयजामा पहन, पॉंव में काले जूते डाल, ऑंखों में सुरमा लगा कर, बनिए का दिमाग और मियां भाई की डेयरिंग के साथ शाहरुख बने हैं रईस आलम। फ़िल्म में उनके अलावा नवाज़ुद्दीन, माहिरा ख़ान,अतुल कुलकर्णी, मोहम्मद जीशान अयूब और नरेन्द्र झा अहम रोल में हैं। ये फ़िल्म गुजरात में अवैध शराब का कारोबार करने वाले गैंगस्टर अब्दुल लतीफ पर आधारित है, जिसपर 80-90 के दशक में मुंबई में बम ब्लास्ट करने का इल्ज़ाम भी लगा था।

फ़िल्म की कहानी रईस यानि शाहरुख ख़ान की है, जो गुजरात के फतेहपुर में रहता है और जिसने बचपन में ही अपनी मां की एक लाइन अपने ज़ेहन में बसा ली थी कि कोई भी धंधा छोटा नहीं होता और धंधे से बड़ा कोई धर्म नहीं होता। रईस चश्मा पहनता है और उसे ‘बैट्री’ कहलाना पसंद नहीं। गरीबी के चलते वो बचपन से ही शराब की तस्करी वाले काम से जुड़ जाता है। आंखों में बड़े सपने लिए रईस अपना धंधा शुरु करता है और ‘अपनी दुनिया’ बनाता है। रईस के धंधे के फंडे सबको अच्छे लगते हैं और वो बन जाता है हर दिल अजीज़। रईस का हर कदम पर साथ देता है उसके बचपन का दोस्त जीशान। कहानी में मज़ा तब आता है जब एसीपी मजूमदार यानि नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी पीछे पड़ जाता है रईस के। क्या होगा रईस का अंजाम, इसके लिए फ़िल्म देखिए।

राहुल ढोलकिया का डायरेक्शन ठीक ठाक सा ही है। फ़िल्म में बहुत सॉलिड पंच या वॉव फैक्टर देखने को नहीं मिलेगा। कहानी सिंपल सी है जो हम पहले भी कई दफ़ा देख चुके हैं। कई हद तक ‘वंस अपॉन ए टाइम इन मुंबई’ की याद भी आ जाती है। हेलेन का ‘लैला’ गाना सनी लियोन पर देखना अच्छा लगता है और एक यही गाना है जो फ़िल्म की स्क्रिप्ट के हिसाब से लगता है। सनी फिलहाल इस बात से बहुत खुश हैं कि उन्हें शाहरुख के साथ काम करने का मौका मिला। रोमांस का एंगल भी फीका सा ही लगता है। गाने भी ज़बरदस्ती ठूंसे से लगते हैं।

‘रईस’ फ़िल्म की जान हैं शाहरुख और नवाज़। दोनों की ही एक्टिंग उम्दा है। सच कहूं तो कहीं कहीं नवाज़ ही भारी पड़े हैं। शाहरुख की इस रोल के लिए मेहनत साफ दिखती है। उनके एक्सप्रेशन्स और डायलॉग डिलीवरी कमाल की है। नवाज़ुद्दीन तो सबको खा गए हैं। एसीपी के रोल में वो बहुत जमे हैं। फ़िल्म की मजबूती में नवाज़ का बहुत बड़ा हाथ है। लिखकर लेने की नवाज़ की आदत इंट्रेस्टिंग लगती है। मुझे डर है कि अगर नवाज़ इस कदर सब पर भारी पड़ेंगे तो कहीं स्टार्स उनके साथ काम करने में डरने ना लगे। माहिरा की एक्टिंग कुछ ख़ास नहीं है। रोमांस भी बहुत अनफिट सा लगा है। जीशान का काम अच्छा है।

म्यूज़िक की बात करूं तो बैकग्राउंड 80-90 के दशक का ही लगता है, जो। अच्छा है। कई गाने हैं फ़िल्म में पर ‘लैला’ को छोड़कर कोई भी गाना कहानी को नहीं बढ़ाता।

नवाज़ और शाहरुख की एक्टिंग के लिए एक बार फ़िल्म देखी जा सकती है।

इस फ़िल्म को मिलते हैं 2.5 स्टार्स।

One thought on “‘रईस’ रिव्यू

  1. Very Well reviewed!!! It’s Sharukh – Nawazuddin that keeps you engaged, rest everything is all seen and heard!!!

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