‘नाम शबाना’ फ़िल्म रिव्यू


जब मैंने ‘द ग़ाज़ी अटैक’ देखी थी, तो सोच में पड़ गई थी कि ‘पिंक’ के बाद तापसी ने ये फ़िल्म क्यों साइन की। आज ‘नाम शबाना’ देखकर थोड़ा ठीक लगा। ये फ़िल्म तापसी पन्नू के लिए बड़ी फ़िल्म है। वो इस फ़िल्म की हीरो हैं। नीरज पांडे ने 2015 में ‘बेबी’ बनाई थी और इस बार ‘बेबी’ को बड़ा करने का काम शिवम नायर को दिया गया। ‘बेबी’ में तापसी अक्षय की मदद करती हैं। वो कैसे इ सीक्रेट सर्विस से जुड़ती हैं, ‘नाम शबाना’ में ये बात साफ की गई है। आप इसे ‘बेबी’ का प्रीक्वल कह सकते हैं।

कहानी शबाना खान यानी तापसी पन्नू की है, जिसे स्पेशल टास्क फोर्स के चीफ रणवीर सिंह यानि मनोज वाजपेयी एक सीक्रेट मिशन के लिए बुलाते हैं और फिर मलेशिया में तापसी अपना हुनर दिखाती है। एक्सप्रेशन्स के मामले में तापसी अच्छी लगी हैं। चुपचाप रहकर अपनी ऑंखों से भाव व्यक्त करने में वो कामयाब रही हैं। मेहनत उनकी दिखती है। ‘बेबी’ में तापसी का रोल शायद बस 20 मिनट के आस पास का था और अक्षय हीरो थे, इस फ़िल्म में अक्षय का रोल तकरीबन 20 मिनट का है, और तापसी ही लीड रोल में हैं। शुक्ला जी भी हैं, जो 5-10 मिनट के लिए होंगे मुरली शर्मा और डैनी भी फ़िल्म में एक एक सीन के लिए हैं। सबका काम अच्छा ही है। मनोज वाजपेयी के लिए लंबे डायलॉग्स थे, जिसको उन्होंने अच्छे से बोला। विलेन के रोल में मिखाइल यानि पृथ्वीराज सुकुमारन बहुत सही लगे हैं। काफी हैंडसम दिखते हैं वो और स्टंट भी अच्छा किया है। अक्षय कम देर के लिए हैं फ़िल्म में, पर सच बात तो ये है कि वो जब जब आए हैं, फ़िल्म की स्पीड बढ़ी ही है।

‘बेबी’ देखने के बाद ‘नाम शबाना’ उसके मुकाबले थोड़ी कम लगती है। फ़िल्म के शुरु में शबाना अपने प्रेमी से पूछती है कि वो उसको प्यार क्यों करता है तो वो उसको कहता है कि ‘मुझे शक है कि पहले कभी किसी पुरुष ने ये बात किसी महिला से कही होगी, लेकिन मैं तुम्हें इसलिए प्यार करता हूं क्योंकि तुम्हारे साथ रहकर मैं सेफ फील करता हूं।’ – अब इस डायलॉग से आप समझ ही गए होंगे कि तापसी का किरदार कैसा होगा, पर फ़िल्म में ये बात बहुत अच्छे से नहीं बताई गई कि सीक्रेट मिशन के लिए तापसी ही क्यों? क्या सिर्फ उसकी ट्रेनिंग और गुस्सैल एटीट्यूट उसे इतने बड़े मिशन के लिए परफेक्ट बनाता है? हालांकि मारधाड़ वाले सीन में वो सॉलिड लगती हैं।

महिला प्रधान फ़िल्म बनाने के चक्कर में कहानी कहीं ना कहीं कमज़ोर पड़ गई है। फिर भी कहानी के ट्विस्ट एंड टर्न्स अच्छे लगते हैं। ‘बेबी’ फ़िल्म की तरह धड़कन हमेशा नहीं बढ़ी रहती पर हां, दिल तो इसमें भी धड़कता है, भले ही वो कुछ सेकेंड्स के लिए ही क्यों ना धड़के। क्लाइमैक्स को भी थोड़ा और बेहतर किया जा सकता था।

नीरज पांडे की हर फ़िल्म में देश प्रेम, राष्ट्रवादी सोच दिखी है, चाहे वो ‘बेबी’ हो, ‘ स्पेशल 26’ हो या फिर ‘द वेटनेस डे’ ही क्यों ना हो। ‘नाम शबाना’ में भी वो सोच आपको देखने को मिलेगी। बस आप ‘बेबी’ वाली उम्मीद लेकर मत जाइए, पर तापसी की मेहनत और शबाना की कहानी जानने के लिए फ़िल्म देखिए।

इस फ़िल्म को मिलते हैं 3 स्टार्स।

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