‘टॉयलेट एक प्रेम कथा’ रिव्यू


चारों ओर हंगामा मचा था। ऐसा लग रहा था जैसे कोई जलजला आ रहा हो। कोई ऐसी चीज़, जो आज से पहले आई ही ना हो। फिर पता चला कि अक्षय कुमार की फ़िल्म ‘टॉयलेट एक प्रेम कथा’ आ रही है। हंगामा क्यों है पर, ये बात फिर भी समझ में नहीं आई। बाद में महसूस हुआ कि फ़िल्म का विषय ही ऐसा है, वर्तमान सरकार के स्वच्छता अभियान से भी जुड़ी है फ़िल्म और सरकार से फ़िल्म को पूरा सपोर्ट भी मिला है। आज फ़िल्म रिलीज़ हो गई है। श्री नारायण सिंह हैं फ़िल्म के डायरेक्टर।

फ़िल्म की कहानी केशव (अक्षय कुमार) और जया (भूमि पेडनेकर) की है। केशव मांगलिक है इसलिए उसकी शादी पहले मल्लिका नाम की भैंस के साथ होती है। फिर उसकी मुलाकात जया से होती है। दोनों में प्यार होता है। जुगाड़ से शादी भी होती है। शादी के बाद जया को पता चलता है कि घर में तो टॉयलेट ही नहीं है और इस वजह से वो घर छोड़कर चली जाती है। अब केशव के घर में शौचालय बना या नहीं, इसके लिए फ़िल्म देखनी पड़ेगी।

अक्षय कुमार एक वर्सिटाइल एक्टर हैं। उनकी एक्टिंग मुझे हमेशा से पसंद भी रही है। इस फ़िल्म में भी उनका काम अच्छा है। अपने तरीके से अक्षय ने हंसाया भी बहुत है पर फ़िल्म देखते हुए मैं निराश हुई। लगा जैसे फ़िल्म में सरकार की चाटूकारिता की जा रही है। ऐसा लगा जैसे अक्षय सरकार के लिए प्रचार प्रसार कर रहे हों। काफी लंबे समय से वो देश भक्ति फ़िल्में कर रहे हैं और उनका काम पसंद भी किया जा रहा है, पर इस फ़िल्म में उनका वो रुप नज़र नहीं आया। ज़रूरी नहीं कि देश और समाज से बनी हर फ़िल्म अच्छी ही बने या उसकी हमेशा तारीफ ही हो। भूमि का काम भी ठीक है। कहीं कहीं वो ज़्यादा लाउड लगी हैं, पर कुल मिलाकर काम अच्छा किया है। अक्षय के छोटे भाई के रुप में ‘प्यार का पंचनामा’ वाले दिव्येंदू शर्मा का काम अच्छा है। सना खान, राजेश शर्मा और शुभा खोटे, सचिन खेडेकर छोटे रोल में थे और सभी का काम अच्छा था। इसके अलावा अनुपम खेर और सुधीर पांडे ने भी बेहतर काम किया है।

डायरेक्शन फ़िल्म का ठीक है। खुले में शौच के मुद्दे को दिखाने की कोशिश की है। कुछ डायलॉग्स चीप लगे हैं, जैसे ‘भाभी जवान हो गई, दूध की दुकान हो गई’। कई डायलॉग्स अच्छे लिखे गए हैं, जैसे -‘ जब तक समस्या खुद की ना हो, कौन लड़े, कौन हल निकाले’, ‘ इस देश में सभ्यता से लड़ना कठिन काम है’। इन सबके बाद भी फ़िल्म एक भाषण ही लगी। शौच की समस्या को सेकेंड हाफ में दिखाया गया है, जिसको झेलना थोड़ा मुश्किल लगता है। फर्स्ट हाफ जहां थोड़ा एंटरटेन करता है, सेकेंड हाफ उतना ही पकाऊ लगता है। कहानी खींची हुई लगती है, जिसको छोटा किया जा सकता है। स्कैम की बात की गई है, पर सही तरीके से दिखाया नहीं गया है। कई बार तो ऐसा लगता है फ़िल्म देखते हुए जैसे ये फ़िल्म सरकार के साथ साथ कई ब्रान्ड्स का भी ऐड कर रही हो। जैसे ही फ़िल्म उपदेश देना शुरु करती है, बोझ लगने लगती है। समझ में नहीं आता कि फ़िल्म प्रेम को दिखा रही थी, शौच की समस्या को दिखा रही थी या सरकार और कई बड़े ब्रान्ड का प्रचार कर रही थी। फ़िल्म खिचड़ी सी बनती नज़र आती है। फ़िल्म का म्यूज़िक भी बहुत अमेज़िंग नहीं है, जो आपको बांध कर रख सके।

अगर आप अक्षय के फैन हैं, तो ये फ़िल्म देख सकते हैं, वर्ना टीवी पर शौच को लेकर कई ऐड आते रहते हैं, आप उसको भी देख सकते हैं। आप डिसाइड कीजिए…टीवी पर इस फ़िल्म के आने का इंतज़ार भी कर सकते हैं या फिर हॉल में जाकर उपदेश को सुनते हुए ब्रान्ड्स के ऐड को भी देख सकते हैं।

इस फ़िल्म को मिलते हैं 2.5 स्टार्स।

 

One thought on “‘टॉयलेट एक प्रेम कथा’ रिव्यू

  1. अब इस राय के बाद तो क्या ही देखना ये फ़िल्म ।

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