‘बरेली की बर्फी’ रिव्यू


फ्रेंच बुक ‘द इनग्रेडिएंट्स ऑफ़ लव’ पर आधारित अश्विनी अय्यर तिवारी की फ़िल्म ‘बरेली की बर्फी’ आज रिलीज़ हो गई। ‘नील बटे सन्नाटा’ के बाद ये अश्विनी की दूसरी फ़िल्म है, जिसे उन्हीं के पति नितेश तिवारी ने श्रेयस जैन के साथ मिलकर लिखा है।

कहानी यूपी के बरेली की है, जहां बिट्टी मिश्रा ( कृति सेनन) अपने पिता (पंकज त्रिपाठी) और मां ( सीमा पहवा) के साथ रहती है। सिगरेट-शराब पीना, रात को घर देर से आना, घर की खुली छत पर डांस करना, शादी के लिए आए लड़कों के सवालों का टेढ़ा जवाब देना….कुछ ऐसी ही है बिट्टी, जिसकी वजह से लड़के उसके साथ शादी करने से मना कर देते हैं। इसी बीच बिट्टी के हाथ लगती है ‘बरेली की बर्फी’ किताब, जिसको पढ़कर उसको लगने लगता है कि ये किताब उसी के लिए लिखी गई है। किताब पर लेखक का नाम है प्रीतम विद्रोही (राजकुमार राव), जबकि किताब लिखी है चिराग दूबे (आयुष्मान खुराना) ने। अब ये कंफ्यूजन किसकी ज़िंदगी में क्या रंग लाएगा, इसके लिए फ़िल्म देखिए।

इस फ़िल्म के हर किरदार ने बहुत अच्छा काम किया है, ख़ासकर राजकुमार राव ने। साड़ी बेचने से लेकर, गुंडा अवतार में आने तक, राजकुमार राव ने अपने अभिनय का जादू पूरी तरह बिखेरा है। बॉडी लैंग्वेज से लेकर डायलॉग्स बोलने के तरीके तक….राजकुमार ने हर फ्रेम में दिल जीता है। ब्राउनी प्वाइंट उन्हीं के हिस्से जाता है। कृति ने भी बिट्टी के रोल में अलग काम किया है। आयुष्मान का काम भी अच्छा है। उन्होंने एक बात साफ कर दी कि प्यार में पड़ने वाला हमेशा हीरो ही रहे, ऐसा ज़रुरी नहीं। उसके अंदर भी एक आम इंसान की तरह डर या जलन की भावना पैदा हो सकती है। माता पिता के रोल में पंकज और सीमा पहवा का काम अच्छा है। दोनों ने ही बहुत हंसाया है। पंकज ने बाप के एक अलग चेहरे को दिखाया है। बहुत ही ‘कूल फादर’ बने हैं वो। फ़िल्म में बाप-बेटी का रिश्ता भी बहुत ही खूबसूरत लगा है। मुन्ना के रोल में रोहित चौधरी और रमा के रोल में रमा का काम भी अच्छा है। फ़िल्म में जावेद अख़्तर की आवाज़ ने सूत्राधार का काम किया है।

अश्विनी का डायरेक्शन बहुत अच्छा है। कैमरा वर्क अच्छा है। लोकेशंस को भी काफी सही तरीके से दिखाया गया है। डायलॉग्स बहुत मज़ेदार हैं, जो पूरे समय हंसाते रहते हैं। फर्स्ट हाफ तो बहुत ही मज़ेदार है। हां, सेकेंड हाफ में ग्राफ ज़रा सा नीचे जाता है। कहानी का अंत भी प्रेडिक्टेबल सा लगता है। एडिटिंग से चीज़े थोड़ी और कसी जा सकती थी। ‘स्वीटी तेरा ड्रामा’ और ‘ट्विस्ट कमरिया’ गाने अच्छे हैं।

एक देसी कहानी को बहुत ही खूबसूरत तरीके से देखने के लिए इस फ़िल्म को देखिए। अपने नाम की तरह फ़िल्म भी मीठी बनी है।

इस फ़िल्म को मिलते हैं 3.5 स्टार्स।

 

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