सबसे अलग


सुनो ना,
क्या मैं सबसे बद्तमीज़?
बिगड़ा मिजाज़
अक्खड़पन से भरी
ज़िद में अटकी
गुस्सा दिखाती
बेपरवाह सी लहराती
क्या मैं सबसे अलग?

हॉं प्रिये,
तुम सबसे अलग
खुद की धुन में मगन
ज़िंदगी को जीते जाती
गुस्ताख़ियों पर तरेरती ऑंखें
खुश रहने का वादा करती
सख्त सी कोमल दुआ हो तुम
तुम हो वो मिन्नत
जो मिन्नतों से पूरी हो

 

One thought on “सबसे अलग

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