यूं ही बस…


अब ऐसा नहीं कि मुझे कोई गिला है
तूने दिया ही हर बात का सिला है

पहुँचना है मुश्किल, तेरी ऊँचाई तक
बेरुख़ी का तेरे बहुत बड़ा टीला है

यारों की यारी में उलझा तू ज़्यादा
सपने से मिलने का वक़्त ना मिला है

ज़िक्र हो ख़ुशी का या दर्द की हो बातें
ख़ुद की ही सोच से तू नहीं हिला है

नगरी अलग सब नियम भी अलग हैं
हुकूमत की तेरे अलग ही ज़िला है

बगिया एक मैंने पनपानी जब चाही
ज़माने के बाद भी कुछ नहीं खिला है

मुमकिन नहीं है वहाँ आना जाना
नफ़रत के तालों में बंधा क़िला है

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