कहीं नहीं जाती ये ‘सड़क2’


1991 में आई थी ‘सड़क’ और अब 2020 में महेश भट्ट लेकर आए ‘सड़क 2’, मतलब 21 साल के बाद महेश भट्ट ने किसी फ़िल्म को डायरेक्ट किया।

‘सड़क’ के रवि किशोर (संजय दत्त), अपनी पूजा (पूजा भट्ट) के मरने के बाद डिप्रेशन में रहते हैं। कई बार वो खुद को मारने की कोशिश भी करते हैं, पर नाकाम रहते हैं। वो अक्सर अपनी पूजा से बातें करते रहते हैं और ऑडियंस के रूप में हमें भी पूजा की आवाज़ सुनाई देती है। अचानक उनकी मुलाक़ात आर्या (आलिया भट्ट) से होती है, जिसने ढोंगी बाबाओं के ख़िलाफ ‘India Fights Fake Gurus’ के नाम से एक अभियान शुरू कर रखा है। रवि और आर्या की इस मुलाक़ात का क्या होता है, बाबाओं के खिलाफ इस अभियान का क्या होता है, यही फ़िल्म की कहानी है।

देखिए, इंतज़ार तो था इस फ़िल्म का, ये अलग बात है कि देखने के बाद लगा कि क्यों था। कहानी ऐसी उलझी और कमज़ोर है कि बात बिल्कुल भी नहीं बन पाती। एक बड़ा बम, जो जलाने पर फुस्स हो जाए, ‘सड़क 2’ को देखने के बाद वही अहसास आता है। फ़िल्म देखते हुए इमोशनल हो जाऊं, थ्रिल फील करूं, स्क्रिप्ट और डायरेक्शन पर चिड़चिड़ी हो जाऊं, या डायलॉग्स पर हसूं, समझ ही नहीं आया। कोई भी किरदार स्टैब्लिश नहीं किया गया। क्लाइमैक्स बहुत ही कमज़ोर रहा और पूरी फ़िल्म ओवर ड्रामा से भरी लगी।

आलिया भट्ट बिना मेकअप के रही पूरी फ़िल्म में और काम भी उनका ठीक रहा पर अपनी एक्टिंग के बाद भी वो इस ‘सड़क’ को कहीं पहुंचा नहीं पाती हैं। कहते हुए तकलीफ हो रही है पर आदित्य रॉय कपूर ने इस फ़िल्म के लिए हामी क्यों भरी, समझ नहीं आया। उनका रहना ना रहना बराबर ही था। गुलशन ग्रोवर, मोहन कपूर जैसे मजबूत कलाकारों को यूं ही चलता कर दिया। संजय दत्त की वजह से थोड़ी सॉंसें मिली इस फ़िल्म को, पर कुछ सीन्स में महेश भट्ट ने उनसे भी ओवर एक्टिंग करवा ही ली। मकरंद देशपांडे का किरदार बहुत ही फनी लगा, क्योंकि वो डर पैदा करने में तो पूरी तरह फ्लॉप रहे। आखिरी में उनका जो लुक दिया गया है, वो ‘सड़क’ की ‘महारानी’ से जबरदस्ती जोड़ने के लिए बनाया गया, जिसकी ज़रूरत नहीं थी। प्रियंका बोस भी ओवर एक्टिंग के साथ ही नज़र आईं।जिशु सेनगुप्ता का रोल भी अच्छा था और उनकी एक्टिंग भी।

फ़िल्म का म्यूज़िक ठीक ठाक सा है। ‘सड़क’ के मुकाबले इस फ़िल्म के गाने बहुत मज़ा नहीं देते। एक सीन में ‘सड़क’ का गाना ‘हम तेरे बिन कहीं रह नहीं पाते’ सुनाई देता है, और बस, वही गाना सुनने में अच्छा लगता है।

अगर अब भी आपके दिमाग में ये सवाल चल रहा है कि देखें या नहीं देखें, तो ‘सड़क’ देखिए, कम से वो कहीं जाती तो है।

Leave a Reply

Your email address will not be published.