‘द गर्ल ऑन द ट्रेन’ रिव्यू


नेटफ्लिक्स पर आ चुकी है ‘द गर्ल ऑन द ट्रेन’, जिसे रिभु दासगुप्ता ने लिखा और डायरेक्ट किया है।

कहानी मीरा कपूर की है, जिन्होंने एक रोड एक्सीडेंट में अपना होने वाला बच्चा खो दिया। इस दर्द से बाहर आने के लिए वो बहुत शराब पीने लगती हैं, उन्हें एम्नीसिया नाम की बीमारी होती है और उन्हें कुछ बहुत लंबा याद नहीं रहता। इस वजह से उनके पति शेखर भी उनसे दूर हो जाते हैं और मीरा की प्रोफेशनल लाइफ भी ठप्प हो जाती है। मीरा रोज़ ही ट्रेन से सफर करती हैं और रास्ते में एक खूबसूरत घर और उस घर में रहने वाली नुसरत जॉन को देखकर उसे एडमायर करती हैं। मीरा नुसरत को देखकर हमेशा ही ये सोचती है कि ‘किसी की लाइफ इतनी परफेक्ट कैसे हो सकती है?’ अचानक ही एक दिन नुसरत गायब हो जाती है और फिर मिलती है उसकी लाश। इस मर्डर मिस्ट्री को सुलझाने का काम करती हैं स्कॉटलैंड यार्ड की टॉप कॉप मिस बग्गा।

ये फ़िल्म ब्रिटिश ऑथर पाउला हॉकिन्स की डेब्यू नॉवेल ‘द गर्ल ऑन द ट्रेन’ का एडैप्टेशन है। इसी नाम से हॉलीवुड फ़िल्म भी बन चुकी है और अब रिभु दासगुप्ता ने इसे हिन्दी में बनाया है। हालांकि अगर आपने नॉवेल पढ़ी है या हॉलीवुड फ़िल्म देखी है तो आप समझ जाएंगे कि दासगुप्ता ने इस फ़िल्म में थोड़ा बदलाव किया है, जिसके लिए तारीफ बनती है। फ़िल्म कई जगह थोड़ी स्लो लग सकती है पर बांध कर बैठाए रखने में वो कामयाब है। फ़िल्म का ट्विस्ट बहुत इंट्रेस्टिंग है, जिसे देखने में मज़ा आएगा, और शायद इसीलिए फ़िल्म का क्लाइमैक्स उसके आगे हल्का लगता है।

हॉलीवुड फ़िल्म में एमिली ब्लंट ने मुख्य भूमिका निभाई थी और उनको उस काम के लिए भरपूर तारीफें मिली थी। ज़ाहिर सी बात है कि परिणीति चोपड़ा के ऊपर प्रेशर रहा ही होगा क्योंकि लोग तो कंपेयर करेंगे ही। पर मीरा के रोल में परिणीति ने जान डालने की अपनी तरफ से पूरी कोशिश की है। हालांकि कई सीन्स में वो एक ही दायरे में बंधी नज़र आती हैं, जिसे हम पहले भी देख चुके हैं। मोटा काजल लगाने के बाद भी परिणीति वो छाप नहीं छोड़ पाती। उनके काम में परिपक्वता नहीं दिखती, उसकी कोशिश ज़रूर दिखती है
मीरा के पति के रोल में शेखर उर्फ अविनाश तिवारी छा गए हैं। अपनी एक्टिंग से उन्होंने अपने कैरेक्टर में जान डाल दी है। कुछ ही समय के एक्टिंग करियर में उन्होंने अलग अलग किरदार निभा कर अपने टैलेंट को साबित किया है। डायलॉग्स, बॉडी लैंग्वेज, एक्सप्रेशन्स कमाल के हैं। प्रोमो देखकर लगा था कि पूरी फ़िल्म में परिणीति ही दिखेंगी, पर फ़िल्म देखकर लगा कि बाकी कैरेक्टर्स भी उतनी ही मजबूती के साथ इसमें दिखे हैं। अपने इंटेंस रोल के साथ अविनाश का कैरेक्टर दमदार लगा है और इस फ़िल्म में वो और चार कदम आगे बढ़ गए हैं। बिना किसी शक के, इस फ़िल्म में सबसे बेहतरीन काम अविनाश तिवारी का रहा है।
नुसरत के रोल में अदिति राव हैदरी बहुत खूबसूरत लगी हैं। हालांकि फ़िल्म में उनके नाम का ज़िक्र ज़्यादा है और स्क्रीन प्रेज़ेंस कम, पर उस थोड़ी ही देर में वो दिमाग में बैठती हैं।
कीर्ति कुल्हाड़ी का काम बहुत ही बैलेंस है। कोई मैलो ड्रामा नहीं, कोई ओवर एक्टिंग नहीं, सिर्फ एक बैलेंस एक्ट।

दो घंटे की फ़िल्म अगर पूरी तरह बांध कर रखने में कामयाब होती है तो उसका क्रेडिट एडिटर संगीत प्रकाश वर्गीज़ को भी जाता है। चंदन सक्सेना का बैकग्राउंड स्कोर फ़िल्म को पूरी तरह सपोर्ट करता है। म्यूज़िक की बात करूं तो शुरूआत में ही ‘तू मेरी रानी, मैं तेरा किंग रे’ गाना अच्छा लगता है। इसके अलावा ‘मतलबी यारियॉं’ और ‘छल गया छल्ला’ गाने वैसे तो सुनने में अच्छे लगते हैं, पर फ़िल्म में जहॉं आप डूबे रहते हैं, अचानक ये गाने आकर आपका कन्सन्ट्रेशन हिलाते हैं। इनकी ख़ास ज़रूरत थी नहीं।

वैल, अगर आपने नॉवेल नहीं पढ़ी है और हॉलीवुड फ़िल्म नहीं देखी है, तो ये फ़िल्म इंट्रेस्टिंग लगेगी। दूसरी कंडिशन में गाने बढ़ाकर इसे देख सकते हैं। एक बार ये फ़िल्म देखी जा सकती है।

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