कभी फाड़ी गई
कभी कूड़े के ढ़ेर में फेंकी गई
कभी पानी गिरा
तो कभी चाय गिरी
किसी को आवरण नहीं था पसंद
तो किसी ने पन्नों को ही नकारा
रंगों पर भी उठे कई सवाल
किसी के लिए थोड़ी मोटी
किसी ने पतली कह ठुकराया
किसी भी हाथों ने नहीं पकड़ा उसे
घर में जगह मिलने की बात तो दूर
रद्दी वाले ने भी नहीं लगाई कीमत
कागज़ की नाव के काम भी नहीं आए पन्ने
ना ही चनाज़ोर के बने लिफ़ाफ़े
तो क्या हुआ जो ये थी किस्मत
लिखूंगी एक बार फिर से मैं
मोहब्बत की एक नई किताब
Behad khoobsurat ehsas, jaise zindagi ko bahut kareeb se dekha ho😊
Aapse mil paata to ek panna ban paata. Beatifully written
Wonderful poem👍
Mai khush hu ki Un mohabat ki page ki ek line Mai mere leye Bhi kuch words ho !!! 💞💞💞