तुम…


तुम बड़े ही अजीब से हो। कितनी बार कहा है कि ये जो तुमने मेरे साथ प्यार का सौदा सा किया है ना, तो उसमें जितना लगाओगे उससे कहीं ज़्यादा पाओगे ही। घाटा नहीं होने दूंगी। फिर ये बेरुखी क्यों? तुम्हे याद है, कैसे तुम मेरी सांसे उलझाते थे और फिर बाद में बड़े प्यार से सुलझाते थे जैसे बता रहे हो कि कोई बहुत बड़े जादूगर हो, जिसे सब कुछ करना आता है। ये तो मैं भी जानती थी कि कोई अपनी जान दे दे प्यार में ऐसा तो कोई खुदा नहीं होता है पर फिर भी तुम उस शहर के लगे थे जहाँ खुदा जैसा कोई बसता होगा। पहले पहल कितनी हिचकिचाहट थी मुझको। जिस बात पे तुम हंसते, मैं भी मुस्कुरा देती, जिससे तुमको एहसास हो कि मैं भी वो सब कुछ समझ रही हूँ जो तुम समझ रहे हो। हम एक साथ कितना घूमते थे पर चलते हुए जब पहली बार हमारे हाथ आपस में टकराये थे तब मानो किसी बिजली का करेंट लगा हो मुझे। अभी सोचती हूँ तो लगता है कि मेरी आंखें एक जगह टिक क्यूँ नहीं पाती थी। जैसे किसी ने उनको हर कोने का ब्योरा लेने का काम दे रखा हो और अब जब ये रिश्ता एक पूरा रिश्ता बन गया है तो ये बेरूखियां कम्बख्त आ कहां से रही हैं? देखो तो ज़रा, कौन सी खिड़की या दरवाज़ा खुला है? बड़ा अजीब सा है ये रिश्ता जैसे बाकी रिश्तों में भी अपना अस्तित्व रखता हो। तुम रुठे हो तो मेरी काम वाली बाई से लड़ाई हो गई, ऑफिस में काम नहीं कर पाई मैं, सड़क पे टक्कर दे मारी रिक्शे वाले को। मेरी तरफ देखो, सुनो मुझे..और जानो इस बात को कि मेरे लिये ज़िंदगी का एक ही अर्थ है, एक ही मतलब है ….तुम ….तुम्हारा ….तुमसे जुड़ा सब कुछ

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