चली गई…चली ही गई…2 दिन से हंगामा, हर तरफ शोर और फिर अचानक, वो चली गई दुनिया से…सुनंदा पुष्कर…क्या था इस नाम में ख़ास? क्या ये कि ये शशि थरूर की बीवी थीं या फिर ये कि इन्होंने तीन शादी की या फिर ये कि प्यार से हारकर इन्होंने खुद को मिटा लिया। आज जब सोचने बैठी हूं तो जाने कितने नाम ज़ेहन में खुद ब खुद आते जा रहे हैं। फ़िज़ा, गीतिका, ज़िया…और भी ना जाने कितने ही नाम हैं…जो अब सिर्फ किस्से कहानियों में ही बाकी हैं…या फिर शायद वहां भी नहीं। क्या है ये? क्यूं है ये? सब कुछ पाने की ख्वाहिश या फिर कुछ ना मिल पाने का मलाल…या फिर दोनों? शोहरत को पाने की कीमत है ये या फिर हद से ज़्यादा चाहतों को बढ़ाने की।
आज जब तुमसे इस बारे में बात की तो बड़ा अजीब सा लगा। शायद मन कुछ ऐसा सुनना चाहता था, जिससे शांति मिले। मन परेशान है…बहुत ही ज़्यादा। जाने कितने ही लोग हैं जो खुद को ऐसे समाप्त कर लेते हैं। कैसा होता है वो एक पल, जब कुछ नहीं दिखता, कुछ नहीं सूझता। तुमसे बातें की तो तुमने अपनी सोच के अनुसार ही जवाब दिया कि जो एक का नहीं हुआ वो दूसरे का कैसे होगा? हम्म्म…बात तो तुमने सही कही। पर प्यार करने वाला कहाँ इस बात को समझ पाता है? वो तो प्यार में रहता है। मुझे ही देखो, तुम्हारा एक परिवार है और मैं तुमसे आ जुड़ी हूँ। क्या सोचना चाहिये मुझे इस बात को लेकर। मुझे हमेशा ऐसा लगता है कि नहीं…मेरा प्यार अलग है, मेरे साथ ऐसा नहीं होगा, तुम भी वैसे नहीं जैसे ‘सब’ होते हैं। सब कैसे होते हैं ये मुझे नहीं पता…बस इतना पता है कि तुम ‘सब’ के जैसे नहीं। तुम अलग हो, बहुत ही अलग। अब सोचती हूँ तो तुम्हें मैंने ही तो अलग बनाया ना। मेरी सोच ने। मुझे हमेशा किसी तीसरे के अस्तित्व से डर लगता था। आज खुद को वहां पाकर बहुत अजीब लगा। तुम्हारे प्यार ने मुझे कभी दूसरी औरत का एहसास होने ही ना दिया। हमेशा लगा कि मैं ही पहली हूँ और वो जो एक छत के नीचे तुम्हारे साथ है, वही दूसरी है। प्रिया ने भी यही कहा हमेशा कि इसमें कुछ गलत नहीं। यहाँ तक कि गीता जी ने भी यही कहा जबकि वो तो प्रोफेसर हैं। ‘जब वी मेट’ में करीना ने भी तो शाहिद को यही कहा था उसकी मां के बारे में कि उनकी कोई गलती नहीं क्यूंकि वो प्यार में थीं। प्यार में तो कुछ भी सही या गलत नहीं होता है ना? मैं भी प्यार में हूँ पर अब डर लग रहा है। सब कुछ बिगड़ जाता है….सब कुछ उजड़ जाता है…क्या मान के चलूँ कि तुमने भी मेरे लिये किसी को छोड़ा तो किसी के लिये मुझे भी छोड़ दोगे? क्यूं है ये डर? दूर करो इसे या फिर शायद मुझे डर में ही रहने दो। प्रिया ने आज कहा मुझे की तू कभी ऐसा मत करियो। मैंने कहा कि मैं भला ऐसे क्यूं करने लगी तो उसने कहा कि नहीं, तू भी उसको सब कुछ मानती है ना इसलिये कहा…’सब कुछ’…हाँ, शायद यही गड़बड़ है। अपने साथी को मानो, बहुत मानो पर सब कुछ मत मानो। जीना मरना सब उसके लिये क्यूं कि बाकी सब अनदेखे हो जाये। हाथ और साथ छूट जाते हैं तो धडकनों का साथ भी नहीं चाहिये होता है। ऐसा लगता है कि मानो अब बस यादों में ही रहेंगे, प्रेम के प्रतीक बन कर।पर उससे क्या हासिल होगा? पर सब बातों के बाद भी जो बात बार बार आती है, वो ये कि अलग होने का भ्रम नहीं पालना मुझे कभी भी। भ्रम में आकर ना खुद को मारना है और ना अपने प्यार को…
अच्छा सुनो अब, परेशान मत होना मेरी इन सब बातों से क्यूंकि मेरा दिल और मेरी सोच तुमको लेकर चिकने पात की तरह हो गई है, जिसे डर भी लगता है और डर नहीं भी लगता है। मैं कभी ऐसा कोई कदम नहीं उठाउंगी पर फिर भी कहना चाहती हूँ कि एक काले जादू सा है ये ‘दूसरा अस्तित्व’… चाहे वो मेरे रुप में हो या फिर उसके रुप में जो तुम्हारे साथ एक छत के नीचे है…
… Great Thought ..crux of whole article …’सब कुछ’…हाँ, शायद यही गड़बड़ है। अपने साथी को मानो, बहुत मानो पर सब कुछ मत मानो। जीना मरना सब उसके लिये क्यूं कि बाकी सब अनदेखे हो जाये।