मसरूफियत से गुज़रते हुए भी आज मैंने बहुत दिनों बाद मंदिर जाने का वक़्त निकाल ही लिया। वैसे तो घर में भी हर दिन पूजा करती ही हूं पर आज सुबह सुबह उसी मंदिर में गई जहां तुम्हें बहुत अच्छा लगता था। मंदिर में घुसते ही ब्रह्मा जी की फोटो दिखी और तुम्हारी कही बात याद आ गई कि ब्रह्मा ने तुमको और मुझको बना के एक प्रपंच रचाया है। ‘प्रपंच’ शब्द अपने आप में काफी अजीब सा लगता है। किसी साजिश की बू आती हो जैसे उसमें से। वैसे सही बात है शायद…वर्ना कहाँ तुम और हम मिल पाते। मेरा तुमसे मिलना किसी साजिश के तहत ही हो सकता था। मेरी बातों पे तो वैसे भी तुमको हंसी आती है, तो इस बात पर भी हंस सकते हो। वैसे तुम्हें बता दूं कि मंदिर में जाकर तुमको याद ज़रुर किया पर गई वहां अपने पिताजी के लिए थी। आज उनका जन्मदिन है। कहते हैं कि हर लड़की के लिये उसके पापा ही उसके आइडियल होते हैं। क्या सोच के ये बात किसी ने कही होगी मैं नहीं जानती…जानती हूं तो बस इतना कि मुझे भी लगता है कि मेरे पिताजी जैसा कोई और नहीं। बाप बेटी के बीच अक्सर देखा जाता है कि सारे मुद्दे बातचीत में नहीं आ पाते हैं पर मेरा पिताजी से रिश्ता एक अपवाद ही रहा। हमारे बीच में वो सारे बिन्दु वार्तालाप में शामिल होते थे जिसके बारे में पुत्री पिता नहीं सोच पाते।
कई लोग कह सकते हैं कि ये एक फिलॉसफी है पर मैं पूरी तरह इस बात से इत्तेफाक रखती हूं कि व्यक्तित्व की नींव परिवार में ही बनती है। मुझे अपना बचपन याद आता है तो अक्सर लगता है कि अगर मेरे पिताजी मुझे ना मिले होते तो मेरा डिज़ाइन कैसा बनता? हां, तुम नहीं समझ पाओ शायद इसको क्योंकि तुमको मेरा एडिटेड रुप मिला है। बड़ी ही चुपचुप रहती थी। अपने ही ख्यालों की एक दुनिया में, जिसके अंदर किसी का भी आना मना हो। इज़हार का ख़्याल तो जेहन में दूर दूर तक नहीं आ सकता था। पापा से ही सीखा कि मन के भावों को शब्दों के ज़रिये कैसे बयां करते हैं। जब किसी भी बात का इज़हार करना ना आए तो ऐसे में ना ही उलझा जा सकता है और ना ही सुलझा जा सकता है। मेरे साथ भी यही होता था। कुंठाओं से बाहर निकल कर जीना भी मैंने पिताजी से ही सीखा। तुम्हें एक और राज़ की बात बताती हूं…मेरी जिन बातों से तुम बहुत इंप्रेस होते हो ना, वो भी पापा की ही देन है। मैं जब छोटी थी तब अक्सर इसी ख़्याल से गुज़रती थी कि बड़े होकर जब मैं दूसरे घर जाऊं तो पापा के होने का एहसास मिलता रहे। सही दिशा हमेशा ही चाहिए होती है।
तुम्हें पता है, कई बार उनको देखती हूं तो लगता है कि जो किसी एक का नहीं होता, वो शायद सबका हो जाता है। कितना मुश्किल होता है ना, जब हम हर जगह जी जान से होने की कोशिश करती हूं। चाहती तो हूं कि तुम भी पापा जैसे हो जाओ पर डर भी लगता है कि अगर ऐसा पूरी तरह हो गया तो क्या तुम भी पूरे पूरे दिन रात दूसरों की समस्या से ही परेशान रहोगे? एक बेटी के रुप में तो पापा के इस रुप को मैंने बहुत सराहा पर क्या एक बीवी के रुप में मैं इसके हजम कर पाऊंगी? कह सकते हो कि समझदार पापा की बेवकूफ बेटी कैसी बातें कर रही है पर मन को कौन कब भला समझा पाया है। डर के पीछे उनकी परेशानी भी एक सबब हो सकती है। देखा है मैंने कि किस तरह जाने अनजाने लोगों की तकलीफ ने उनकी ज़िंदगी को उलझाए रखा। किस तरह कभी कभी वो मायूस भी दिखे। तुम्हें पता है, बात बड़ी अजीब लगेगी पर सच तो यही है कि जो दूसरों को दर्द बांटता है, वो अक्सर अपनी तकलीफों में अकेला रह जाता है क्योंकि लोगों को भी आदत हो चुकी होती है उस शख्स को मजबूत देखने की।
जन्मदिन पर हर कोई बधाई ही देता है। मैं भी चाहती हूं कि उनको राहत मिले, उन उलझनों से, जिसे एक बाप एक समय बाद समझ नहीं पाता और इस चक्कर में ना ही पूरा उलझ पाता है और ना ही पूरा सुलझ पाता है।
तुम भी सुनो…अब तुम भी पापा बनने जा रहे हो इसलिए पापा जैसे बन जाओ…
हवा का रुख पलट कर, जब भी मुझे गिराना चाहता है
कोई मुझे आकर अपनी बांहों में थाम लेता है
जब मैं अपनी शून्य आंखों से किसी को देखती हूं तो
कोई आंखों ही आंखों में मुस्कुरा के चला जाला है
रात के सन्नाटे में मुझे जब सिर्फ मेरी तनहाई सुनाई देती है
कोई धीरे से गज़ल मेरे कानों में गुनगुना जाता है
जब भी मैं किसी के कदमों के इंतज़ार में रहती हूं तो
कोई सांसों के ज़रिए मेरे दिल में समा जाता है
जब ज़िंदगी के अंधेरे में मैं कुछ ढूंढ़ती हूं तो
कोई चुपके से मुझे रोशनी दे जाता है