बाबा…


जिंदगी में ऐसी कई चीज़ें होती हैं जो आप सीखना नहीं चाहते पर वक्त आपको सिखा ही देता है। बाबा के बिना रहना मैं कभी नहीं सीखना चाहती थी पर सीखना ही पड़ा। ये अलग बात है कि बाबा उस हवा में शामिल हैं जिसमें मैं सांस लेती हूं। तुम्हें पता है, बाबा के वैसे तो कई पोते-पोतियां, नाती नातिन थे पर मेरी जगह बड़ी अलग सी बना देती थी उन्होंने। जैसे तुम्हारे प्यार ने मुझे इतरने का मौका दिया है, बाबा के प्यार ने मुझे इसका सौ गुना मौका दिया था। लाडली थी उनकी। जैसे एक ज़िंदगी…एक बाबा…वैसे ही एक समोसे की दुकान थी, जहां मैं बाबा के साथ शाम को जाती थी। समोसे खाते…पेड़े खरीदते…सबको थोड़ा थोड़ा देकर पूरा पैकेट मेरे ही हिस्से में आ जाता। उनके गुस्से से डर भी लगता था। मेरी चोटी खिड़की से बांध देते कि जैसे ही मुझे झपकी आ जाए तो मेरे बाल खिंचे और मेरी नींद उड़ जाए पर इन सबके बीच अगर ज़रा भी हंसी उनके चेहरे पर झलकती तो फिर खेल सारा मेरे हक में होता।
कुछ अजीब सा ही रिश्ता था मेरा बाबा के साथ। पता नहीं वो पच्चीस साल के हो जाते थे या मैं अस्सी साल की…कभी उनका चेहरा छोटा हो जाता तो कभी मेरा बड़ा…जानती  हूं कि मेरी सोच को देखकर तुम भी सोच रहे होगे कि आज हुआ क्या है इसे? तो सुन लो, ऐसा कुछ भी नहीं…खाली वक्त में अक्सर गुज़रे लम्हें याद आ ही जाते हैं। अतीत हमेशा व्यतीत होता है पर यादों से वो कभी नहीं हटता। बाबा की छड़ी, उनका चश्मा…जिसे छु कर आज भी उनको अपने पास ही महसूस करती हूं…

मैं हमेशा चाहती थी कि हमारी बेटी को भी मेरे बचपन जैसा सुख मिले पर अफसोस … हमारी बेटी बाबा शब्द और उससे मिलने वाले एहसास से वंचित रही। उसे कभी पता नहीं चल पाएगा कि दादा की कहानी क्या होती है? छोटी छोटी चीजों के लिए उनसे लड़ना क्या होता है? इतर के अपनी डिमांड पूरी करवाना क्या होता है? आज शाम को जब वो खेलने बाहर गई तो उसकी बेस्ट फ्रेंड माही अपने दादा जी के साथ आई थी। शायद पहली बार उसे महसुस हुआ कि जो बातें आप मम्मी पापा से नहीं मनवा सकते या कह सकते हैं वो बाबा के लिए चुटकी का काम होता है। उसके पास ऐसा कोई नहीं जो हमारे गुस्से से उसे बचा सके…हमारी लड़ाई के शोर से दूर ले जा सके…नींद ना आने पर कहानी सुना सके…हर शाम कहीं घुमाने ले जा सके…जो उसकी ज़िद में जोड़ घटाव ना करे…

जानती हूं कि एक पिता एक दादा की भूमिका कभी नहीं निभा सकता पर ठहरो ज़रा…किसी भी कमी की वजह से हमारी बेटी का बचपन खो जाए उससे पहले ज़रुरी है कि उसका बचपन थाम लिया जाए…ठीक वैसे ही जैसे सांसों के थमने से पहले सांसों को थामना ज़रुरी होता है…

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5 thoughts on “बाबा…

  1. Tumhare dil ki gehrai ko jaanna shayad samudr k atha gehrai ko naapne barber hoga , kaafi achha likh leti ho

  2. All your words really touch my heart…love reading them…all the best and keep it up…

  3. tum likhti bahut achchha ho shweta … kyoki tum insaan to achchhi ho hi … rishton ko bhi bakhubi samajhti ho …. har koi tumhari likhi baaton se khud ko connect karta hai … main to aur behtar samajh paata hoon … kyonki mera bhi observation kuchh tumhare jaisa hi hai … aur tumse in articles ko kayeen baar maine muh zubani bhi suna aur mehsoos kiya hai … great writing keep on doing this … phir inko ek saath compile kar ke ek book release kar dena … best seller hogi wo …

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