“विजय की सब बात मानी है,मम्मी जी की सब बात मानी है, पापा जी की सब बात मानी है…मतलब तू जिसका नाम ले, उसकी हर बात मानी है मैंने…”
नशे की हालत में कंगना का ये दुख…क्वीन… पहली बार ऐसी कोई फिल्म देखी जिसमें कुछ भावनाओं को इतनी खूबसूरती के साथ दिखाया गया हो। कपिल के शो में जब कंगना, राजकुमार और डायरेक्टर विकास बहल आए तब तीनों को देख कर लगा कि कुछ ऐंवी सी ही फिल्म होगी। हालांकि इसके गाने अच्छे लगे थे सुन कर। ‘सारा लंदन ठुमकदा’-इस गाने पर तो अपने भाई की शादी में हम सबने डांस भी किया था। प्रोमो से भी फिल्म सही सी लग रही थी पर फिल्म एकदम देखनी ही है, ऐसी कोई ख्वाहिश दिल ने नहीं पाली थी। जिस किसी ने भी फिल्म देखी उसने यही कहा कि बड़ी सही सी फिल्म है यार। लगा कि चलो, काफी दिन से कुछ देखा नहीं… फिल्म ही देख लेती हूं। फिल्म शुरू हुई और मुझे होश इंटर्वल पर ही आया।
लड़की हूं इसलिए कुछ भावनाओं का तूफान उठा, ऐसा कुछ नहीं है। नारी मुक्ति मोर्चा वालों से भी मेरा कोई संबंध नहीं पर ये फिल्म बहुत अच्छी लगी। अकेले रोकर, घबरा कर, डर कर और उन तमाम चीजों से गुजर कर जिससे रानी इस फिल्म में गुजरी, खुद को पाने का सिलसिला अच्छा लगा। टिपिकल दिल्ली की लड़की वाली हरकतें उसके अंदर थी पर हां, उसकी बातें उसे अलग बनाती थी। मसलन, डिस्को में जाकर अपने जैकेट को पूरा घूमा कर वापस अपने पर्स में रख लेना… सुनसान रास्ते में चोर के पर्स खींचने पर अपना पूरा जोर लगा देना…शराब के नशे में भी हर किसी के नाम के आगे ‘जी’ लगाना। अजीब सी ही बात दिखाई जो सच में सच है। पहले किसी के पीछे ऐसे पड़ना, जैसे ज़िंदगी का बस एक मात्र लक्ष्य वो ही हो और फिर अचानक उसकी कमियां देखना, खुद से उसको कम समझना। विदेश में जाने वाला कैसे महान बन जाता है, ये मैं आज तक नहीं समझ पाई। विजय जैसे लड़के समाज में आजकल काफी आम हैं। हां, कंगना जैसी लड़कियां मिलनी मुश्किल हैं। कहां हिम्मत बचती है एक दिन पहले जब शादी टूट जाए तब? रानी ने वो हिम्मत जुटाई। जो सपने शादी के बाद विजय के साथ बुने थे, वो टूटने ना दिया। बाहर जा कर जिस किसी परिस्थिती से वो गुज़री, उसमें भी उसने अपने ‘मैं’ को संभाल के रखा। जाने क्यों क्रश होने पर इटैलियन शैफ के साथ उसका वो ‘लिप टू लिप किस’ भी मुझे स्वाभाविक लगा। और तो और, संता बंता को भी रानी ने फेमस बनाया। एक और चीज को भी काफी नज़ाकत से दिखाया गया है। पंजाबियों का शो आॅफ नेचर। लंदन में रिश्तेदारों का फ्रेंच बोलना और शगुन देने से पहले सोचना कि कितना दें। आस पास ये सारी चीजें बड़ी आसानी से देखने को मिल जाती हैं। एक चीज़ जो बड़ी अल्टीमेट लगी वो है उसके मां बाप की सहजता, अपनी बेटी को सपोर्ट देना। दादी मस्त थीं। उम्रदराज़ थी इसीलिए शायद हिदायत भी सौ टका सही दिया। कोई भी कैरेक्टर ऐसा सही नहीं जो किसी से कम लगा। स्क्रिप्ट भी कसी लगी। कुल मिला कर विकास का काम तारीफे काबिल लगा।शुक्रिया विकास इस फिल्म के लिए।
स्टार प्लस के स्टार वर्डिक्ट पर एक प्रोग्राम देखा था, जिसमें कंगना भी आई थी। किसी बात पे उसने कहा कि काम में तन्मयता कैसे लाई जाती है, ये बात हीरो से ही सिखनी पड़ेगी। लड़कियां उन्हे एस एम एस करती रहती हैं और वो लोग अपने स्क्रिप्ट पर काम करते रहते हैं। शायद कंगना भी अपने प्रेम प्रसंग से बाहर आकर काम पर ध्यान देने लगी है। 2013 में जितनी फिल्में कंगना ने की, उन सबका क्रेडिट हीरो लेकर चले गए। रज्जो को बहुत सफलता नहीं मिली पर क्वीन ने सारी कमी पूरी कर दी। शायद यही वजह है कि 2013 की क्वीन दीपिका को 2014 की रानी से जलन हुई।
कोई अजीज़ जब दिल तोड़ता है तो दो ही चीज़े होती हैं। ज़िंदगी में हलचल या फिर ज़िंदगी में सुकून… कंगना ने सुकून पाया क्योंकि उसने सपनों को नहीं छोड़ा, परिवार ने उसका साथ दिया, विदेश में भी जो मिला वो सही मिला। याद है कि जब फिल्म देखकर हाॅल से बाहर निकल रही थी तो कुछ आंटियों की आवाज़ आई कि भला ऐसा होता है क्या कभी? कौन कुड़ी ऐसे कर पाती है? तो मेरा सवाल भी यही है कि भला क्यों नहीं कर पाती है। ज़िंदगी जब टूटती है तो तुरंत ही उसको संभालना ज़रूरी है। रोना आएगा, अकेलापन भी महसूस होगा, घबराहट भी होगी पर फिर जो हासिल होगा वो तुम्हें सही मायने में रानी बनाएगा…