रंग गई मैं… सबने मिल कर रंग ही दिया। टोका मैंने सबको कि कोई रंग चढ़ेगा नहीं पर किसी ने मेरी ना सुनी। अबीर गुलाल लगाया, पक्के रंग को पानी में घोल के लगाया पर जैसे ही नहा के आई मैं पूरी तरह साफ थी। सब हैरां परेशां…मैंने पहले ही कह दिया था कि कोई रंग नहीं चढ़ेगा।
कहते हैं ना कि हल्के रंग पे तो कोई भी गहरा रंग चढ़ जाता है पर गहरे रंग पे कोई भी रंग नहीं चढ़ पाता है। तुमने जब वो पहली बार दीवार से लगा के, मेरे दोनों हाथों को पीछे से पकड़ कर, अपने गालों से मेरे गालों पर जो गुलाल लगाया, उस लम्हे का रंग इतना गहरा निकला कि अब तक नहीं छूटा। सिर्फ गालों पे लगाया था रंग तुमने पर मैं रंग गई थी पूरी तरह। कितना डरती थी मैं रंगों से… लगता था कि रंग बिखर जाएंगे और सब बहुत गंदा हो जाएगा, पर रंग इतनी खूबसूरती भी दे सकते हैं, ये पहली बार पता चला। मुझे तुम्हारे रंग में रंगना सच मेंबहुत अच्छा लगा।
कल शाम गई थी बाज़ार अपनी सहेली के साथ रंग लेने। लिया तो मैंने भी रंग पर जानती थी कि सब फीके हैं जिसे वो पक्के रंग कह के बेच रहा है। मेरी दोस्त बहुत जोश में थी। इसी महीने सगाई हुई उसकी रोहन से। आज सुबह से ही उठी हुई थी। शायद पहली होली ने उसे सोने ना दिया। वैसे नींद तो मेरी आंखों से भी कोसो दूर थी। त्योहारों पे तुमसे दूर रहना बहुत अखरता है। जानती हूं कि अब ज्यादा दिन इस विरह पीड़ा से नहीं गुज़रना है पर फिर भी…घंटी बजी तो दरवाज़ा खोला। सामने रोहन ही था हाथ में कई सारे रंगों के पैकेट लेकर। ‘ये लो, कमी थी जो तुम और लेकर आ गए’ ये कहते हुए मैं अंदर आने लगी। तभी सीमा भी आ गई। मैं अपने रूम में चली गई। जानती थी कि उन्हें अभी अकेला छोड़ना ही सही है क्योंकि मैं चाहती थी कि सीमा पर भी उतना ही गहरा रंग चढ़े रोहन का। सीमा ने रोहन को काफी रोकने की असफल कोशिश की। थोड़ी देर बाद पड़ोस से भी बहुत सारे लोग आ गए। सबने अपनी तरफ से एक दूसरे को पक्का रंग लगाया। सब तब चौंक गए जब मुझ पर से सब रंग उतर गया सिवाए एक रंग के…रीमा आंटी ने मुझे टोका- ‘अरे, ये क्या, तुझे किसी ने रंग नहीं लगाया क्या?’ मैं हंसने लगी उनकी ये बात सुनकर। सीमा ने हंस कर कहा कि लगाया तो था हम सबने मिलकर पर इस पर कोई रंग चढ़ता ही नहीं। कुछेक ने मुझे ये भी कहा कि अरी पगली, मन छोटा थोड़े ही ना करते हैं। आ जाएगा, पक्का रंग लगाने वाला भी आ जाएगा। मैं मुस्कुरा के रह गई। अब भला उन्हें क्या बताती कि कोई आ चुका है तभी तो उन लोगों की सारी कोशिश बेकार हो गई।
तुम जगह से बहुत दूर हो। हो सकता है कि कभी तुम्हारा मन मचल जाए किसी को रंग लगाने का… लगा लेना…मुझे किसी तरह का कोई परहेज़ नहीं पर चाहती हूं कि मेरे हिस्से का रंग तुम हमेशा संभाल के रखो। जब तक वो रंग तुम्हारे पास रहेगा, मुझ पर कोई रंग नहीं चढ़ेगा…