बेसबब इश्क़ में कैसे मर जाऊं, शमा चाहे मैं पतंगा हो जाऊँ
सब देखा सुना समझा है मैंने, कैसे गूंगा बहरा अंधा हो जाऊं?
बेहिसाब ज़िल्लत सही है मैंने, इक ज़रा सी प्यार की खातिर
इक कोना भी ना मिले जो दिल में, कैसे मैं चंगा हो जाऊं
कोशिश करके देखी मैंने, नेकी कर दरिया में डाला
फख़त करने से क्या होगा, कैसे ख़ुदा का बंदा हो जाऊं?
है गुज़ारी मैंने ज़िंदगी, दुनियादारी की फ़िक्रों में
जब उबाल भरा मेरे अंदर, कैसे यूं ठंडा हो जाऊं
गंदी गलियां देखी मैंने, आशियां भी किया वहां
मन तो गंगा में बसे है, कैसे मैं गंदा हो जाऊं
“मन तो गंगा में बसे है, कैसे मैं गंदा हो जाऊँ”
सुंदर ख़याल है, मोहतरमा श्वेता “शायरा” तिवारी जी!
mam ,I have read ‘KAISE’ and few others as well.I have reasons to appreciate that you think clear and write well.many things went over my head and i am trying to bring them in my head after understanding them in expression,quality and gest of your thought.