यूं ही…


चल अब छोड़ आते हैं, 

उन यादों के काफिले को

जो अक्सर एक तिलमिलाहट देते हैं…

चल अब छोड़ देते हैं,

अमावस की उस कालिमा को

कि

चांदनी में नहाये

एक अर्सा गुज़र गया

हाँ…

चल अब छोड़ आते हैं 

सुख दुख के भंवर में फंसी सोच को

चल अब भटकाव को रोकते हैं

स्थिर होकर तटस्थ होते हैं

सोच,

मृगतृष्णा में तड़प जब इतना सुकून मिला

तो

जब प्यास बुझेगी तो क्या होगा…

trangram

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *