बीमार सा पड़ा है सब कुछ
कुछ यादें…कुछ सोच हैं
जो तड़प सी रही हैं
सांसे इनकी ऐसी चल रही हैं
जैसे,
वैन्टिलेटर पर हों
पता नहीं कि ज़िंदा हैं भी या नहीं
दवा दे के देखा मैंने
होश का कोई नामोनिशां नहीं
आ जाओ…
नब्ज़ देख लो
उम्मीद नहीं कि
अब कुछ ज़िंदा रह पाएगा…