शाम हो गई है। सारे परिंदे उड़ गए हैं। अपने अपने घोंसले में पहुंचने वाले होंगे या शायद पहुंच चुके होंगे। सुबह से सब साथ थे। कितना हल्ला गुल्ला था ना…मज़ा आ रहा था। भगवान की कसम, एक बार भी ये ख़्याल नहीं आया कि साथ में कोई नहीं। चारों तरफ शोर ही शोर। मज़ेदार बात ये कि सर में कोई दर्द भी नहीं हुआ। लगा कि ज़िंदगी बड़ी सही चीज़ है यार…अब इस पर इल्ज़ाम लगाना बंद करना चाहिए।
मेरे थकने पर एक चिड़िया आई थी मेरे पास। मेरा हाल चाल भी पूछा। सुबह से ही दाना पानी के चक्कर में लगी हुई थी। रोना भी रोया उसने अपना कि कभी कभी हवा का तेज झोंका उसका घोंसला तोड़ देता है और उसे पनाह नहीं मिलती। बात तो उसकी सही ही लगी, नया घोंसला बनाना इतना आसान थोड़े ही है। फिर मैंने ही उसे समझाया कि कोई बात नहीं, घोंसले भले ही टूट जाए, साथ नहीं छूटना चाहिए। वो मेरी बात सुनकर खुशी से चहचहाई और हामी में सर हिला कर उड़ गई। शायद अब उसको अपने घोंसले से ज्यादा अपने साथी पर एतबार रहेगा।
शिकायत फिर से शुरु हो चुकी थी मेरी ज़िंदगी से। ये हवा इतनी तेज क्यों चलती है भला? वो भी इतनी तेज कि किसी का घोंसला ही उड़ जाए। ये तो ग़लत बात है। थोड़ी देर सोचने के बाद मैंने खुद ही इस सोच को झटका और याद किया कि नहीं नहीं…ऐसे नहीं सोचना है। अभी अभी तो मैंने महसूस किया था कि ज़िंदगी बहुत खूबसूरत है। मैं अपने काम में लग गई।
कुछ दिनों पहले फोन आया था। लड़का देखा है तुम्हारे लिए, आ जाओ तो इस बार सगाई कर देंगे। जो सबसे पहली सोच आई वो ये ही थी कि ये कैसी अजीब सी ज़िंदगी है? ऐसे कैसे बिना किसी को जाने पहचाने हां कह दूं। आज भी वही बात दिमाग में घूम रही थी। सोचा कि काम में लगती हूं वापस और ज़िंदगी के जिस रुप को अभी अभी मैंने महसूस करना शुरु किया था, उसी पर टिकी रहती हूं। अचानक से वापस वही चिड़िया मेरे पास आकर बैठ गई। अब शायद उसकी बारी थी सवाल पूछने की। क्या हुआ? क्यों परेशान हो? मैंने हंस के कहा कि कुछ नहीं, तुम्हारे घोंसले के बारे में सोच रही थी। वो मेरी तरफ अपनी छोटी पर पैनी नज़रों से देखने लगी। मुझसे पूछा कि तुम्हारे पास कोई घोंसला है? मैंने उसकी तरफ देखा और कहा कि नहीं, अब किसी के साथ होने जा रही हूं तो घोंसला भी बन जाएगा। उसने बड़े ग़ौर से देखते हुए पूछा कि अब तक कहां रह रही थी? मैंने अपनी नज़रों को झुका कर कहा कि थी तो घोंसले में ही, पर वो बिना हवा के ही उड़ गया। चिड़िया हंसी और कहा कि शायद इसीलिए मजबूत घोंसले का इंतज़ाम किया जा रहा है। मैंने उसे देखकर मुस्कुरा कर कहा कि तुम्हारा भी तो मजबूत नहीं है, फिर मुझे कैसे कह दिया?
उसने अपनी चोंच मेरे सर पर मारते हुए कहा कि भूल गई…अभी अभी तुमने ही तो समझाया था कि साथ मजबूत होना चाहिए, घोंसले तो फिर भी बन जाते हैं। ये कह कर वो फुर्र से उड़ गई और मैं उसे देखती रही।
शाम हो चुकी है। सारे परिंदे उड़ गए हैं। अपने अपने घोंसले में पहुंचने वाले होंगे या शायद पहुंच चुके होंगे। मैं भी जा रही हूं क्योंकि ज़िंदगी मुझे लेकर जा रही है। कोशिश यही है कि इस बात को कभी तो समझ और स्वीकार कर सकूं कि साथ मजबूत होना चाहिए, घोंसले तो कभी भी बन सकते हैं।
घोंसले बनते बिगड़ते रहते हैं … तो जरूरी नहीं कि बड़ी एहतियात से बना घोंसला
बरक़रार रहेगा क्योंकि यह निर्भर करता है कि तूफ़ान कितना तेज़ है और आपकी खुद की
क्या तयारी है उस बदलाव के लिए ….
कुछ भी कहो एक बार फिर से कह रहा हूँ … “बहुत खूब लिखा आपने” …
एक और अच्छा पन्ना तैयार हो गया आपकी बुक का …
लगी रहो मुन्ना बहिन ….
ही ही ही ही …