जा रही हूं छोड़कर सब कुछ ही…
उन ख़्यालों को, जो सिर्फ ख़्याल भर ही थे
भूलावे को ज़िंदगी मानना भूल थी
सोफे पर मेरी गर्माहट, महसूस मत करना अब तुम
रसोई के डिब्बे भी अब खुद ही संवारना
सुनो,
उस टब का पानी तो सूख गया होगा ना अब तक
बिस्तर की सिलवटें हटा दो अब
मेरे बाल बिखरे होंगे टूट कर
साफ कर देना उन्हें भी
साथ ही साफ कर दो उन लम्हों को
जब हाथों ने कुछ वादा किया था
जब सांसों ने एक दूसरे को सांस दी
उस लाल साड़ी का अब क्या करूं?
तुम्हारी दी घड़ी खोल दूं
तो वक्त रुकेगा क्या?
सुनो ना,
धीरे धीरे बिना गिराए खाना
मुंह से आती बदबू का ध्यान रखना
बिना पिए सोने की कोशिश करना
तुम संभाल लोगे ना खुद को?
शायद हां…अब मैं नहीं हूं ना
अब सब आसान होगा
तुम वहां…
मैं यहां…
चलो,
इस अधूरेपन में खुद को पूरा करें…
I thought next u will right about Fawad khan.ur deep love for him…hahahaha….. Just joking…