लोग जिसे पुल, पुलिया, सेतु या ब्रिज कहते हैं, वो क्या है भला? दो किनारों को मिलाने या जोडे रखने का एक जरिया ही ना…बिल्कुल रूही की तरह। हाँ…हमारी बेटी रूही, जो अपने जनम से पहले ही हमारे रूह में उतर चुकी थी। रूही ने भी हम दोनों को बांधे रखने का काम, जोड़े रखने का काम हमेशा ही किया। कल उसकी शादी होने जा रही है। मेरे अंदर बहुत घबराहट है। मुझे ये नहीं पता कि ये डर एक बीवी का है या फिर एक माँ का।
जब हम दोनों की शादी हुई तो मौसम कितना चुप सा था ना। झिझक खोल कर मुस्कुराने में वक्त ने भी काफी वक्त लिया था। तुम्हारी अपनी ही दुनिया थी। प्यार तुम मुझसे करते थे, ध्यान भी रखते थे मेरी हर छोटी बड़ी ज़रूरत का पर फिर भी कहीं कुछ तो ऐसा था, जो कम था। कई बार ऐसा होता कि तुम ऑफीस से आकर भी लैपटॉप में लग जाते या तुम्हारा फोन चालू हो जाता था। ध्यान तो रख लेते थे तुम पर तुम्हारे पास समय की कमी हमेशा ही रही मेरे लिये। मुझे आज भी याद है वो दिन, जिस दिन तुम ऑफीस से आये तो यूँ लग रहा था जैसे आज कोई बड़ा तुफ़ान आएगा। गुस्से में तमतमया चेहरा, ज़बान से निकलते सुलगे अल्फाज़। खुद में हिम्मत जुटा के मैं गई थी तुम्हारे पास। ‘क्या हुआ?’ तुम्हारे कंधे पे हाथ रख के मैंने पूछा था। ‘कुछ नहीं’ का जवाब देकर तुमने मेरा हाथ झटक दिया। मैं जानती थी कि अब इसके आगे मैं और कुछ भी नहीं पूछ सकती। कई बार तुम गुस्से में इतना आगे निकल जाते थे कि तुम्हारा हाथ भी उठ जाया करता था। हालांकि बाद में शांत होने पर तुम माफी भी मांग लिया करते थे, पर मेरे मन में ‘कुछ’ ऐसा आ जाता था, जो हटने में काफी समय लेता था। आस पड़ोस, रिश्तेदार और दोस्तों के बीच तुम बहुत ‘फेमस’ थे। अपने स्वभाव, अपनी समझ और अपनी ईमानदारी को लेकर। सलाह मशवरे के मामले में सब आंख मूंद कर तुम पर भरोसा करते थे। मुझे भी अच्छा लगता था तुम्हारे इस रुप को देखकर। इतने सारे लोग थे तुम्हें पसंद करने वाले कि अगर कुछ मुझे नापसंद भी आता था तो वो इतनी सारी पसंद में दब जाता था।
शादी के 2 साल बाद रुही हमारी ज़िंदगी में आई। नाम मैंने पहले से ही सोच रखा था। तुमने भी बिना किसी टकराव के मेरी बात मान ली। उसके आने के बाद मेरी ज़िंदगी को जैसे एक अलग ही मकसद मिल गया हो। पूरी की पूरी दुनिया ही मेरी उसके इर्द गिर्द घूमने लगी। अब मुझे तुम्हारे लेट आने से, शराब पीने से, गुस्सा करने से पहले जैसा फर्क नहीं पड़ता था।
समय बीतता चला गया और रुही 15 साल की हो गई। 15वें साल का ज़िक्र इसलिए कर रही हूं क्योंकि ये वही साल था, जब मुझे कियारा के बारे में पता चला। तुम्हारे ही ऑफिस में थी। प्यार तो नहीं कह सकती, पर हां…कुछ तो ज़रुरत थी, जिसकी वजह से तुम दोनों साथ में बंधे थे। फोन पर मैसेज देखे थे मैंने। पढ़ कर लगा कि क्या अब तक मैं छलावे में रही? कबसे चल रहा था ये सब? मुझे भनक तक भला कैसे नहीं लगी? जानती थी कि तुमसे सवाल कर मैं कुछ भी हासिल नहीं कर पाउंगी और इसीलिए मैं चुप भी हो गई। रुही को जाने क्या समझ में आया कि उसने मेरे साथ वक्त बिताना शुरु कर दिया। पहले भी उसका समय मुझे मिल ही जाता था पर अब उम्मीद से ज्यादा मिलने लगा था। वो रात के खाने के बाद तुम्हारे साथ भी बाहर जाने लगी थी। कुछ तो बातें ऐसी हुई कि मुझे तुम्हारा बदला रुप मिलने लगा था। जब भी हमारे बीच कोई दीवार खिंचती, तो उसको तोड़ने का काम रुही ही करती। रुठने पर एक दूसरे तक बातें पहुंचाने का काम करती थी। घर एक संपूर्ण घर सा लगता था क्योंकि वो थी। शादी की सालगिरह पर हमें एक साथ डांस करवाना, बर्थ डे पर केक मंगवा कर एक दूसरे को खिलाने को कहना, फिल्म में कोई भी रोमांटिक सीन देखकर हम दोनों को छेड़ना…कितना कुछ होता रहा है उसके होने पर। क्या कुछ होगा अब? अब हम दोनों के किनारे कैसे मिलेंगे? हमें जोड़ने का काम कौन करेगा अब?
साल बीते…समय बीता…रुही जॉब करने लगी। अनीश आया उसकी ज़िंदगी में और उसके चेहरे की रंगत बदल गई। मैं बहुत खुश थी क्योंकि वो बहुत खुश थी। हमने मिल कर उसके रिश्ते की बात चलाई और शादी पक्की कर दी। दिन भी आ गया। पूरा घर मेहमानों से भरा पड़ा है। घर में बहुत ही शोर शराबा है। आज की सारी रस्में पूरी हो चुकी हैं। सब थक कर सोने चले गए हैं। थक तो मैं भी चुकी हूं…पर शरीर से नहीं बल्कि मन से। समझ में नहीं आ रहा कि हम दोनों को जोड़े रखने का जो जरिया था, जो हमारी आंखें, हमारी ज़ुबां, हमारी सांसे थीं…वो कल विदा हो जाएगी…क्या घर में सिर्फ सन्नाटा रहेगा अब या फिर जाते जाते वो तुम्हारे अंदर कुछ डाल गई है?
मैं डर में हूं…बस ये समझ में नहीं आ रहा कि ये मां का डर है या बीवी का…