ना हो…


चल, अब ले चल तू कहीं, जहां कोई नुमाइश ना हो

जां देकर भी साबित ना हो, ऐसी कोई आजमाइश ना हो

 

कुछ अधूरी चाहतें हैं या हैं ख़्वाब दबे पड़े

चाल इश्क की ऐसी कि जाने कितने गए मरे

पूरा करने के लिए, जिसे रोज़ मरना सा पड़े

इस बेचारे से दिल में, ऐसी कोई ख्वाहिश ना हो

 

बंधन में रहकर बहुत मज़ा, पर बंधन है एक सजा

बांध ले तू बंधन में, दिल की है अब ये रज़ा

किश्तों में है बंटी ज़िंदगी, तेरी भी औ’ मेरी भी

कतरा कतरा जो मिले, ऐसी कोई फरमाइश ना हो

 

चल, अब ले चल तू कहीं, जहां कोई नुमाइश ना हो

जां देकर भी साबित ना हो, ऐसी कोई आजमाइश ना हो

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