बहुत जलन हो रही है…ज़रा ज़रा सा दर्द भी। हुआ यूं है कि तेरा इश्क़ बहुत ज़्यादा उबल गया है मेरे दिमाग में। इतना ज़्यादा खौल गया कि मुझे पता ही नहीं चला। जब उसके पास गई तो उसके छींटे मेरे शरीर के अलग अलग हिस्से पे आ गिरे और फफोले पड़ गये हैं। ये कैसा इश्क़ है तेरा मेरे हिस्से, समझ ही नहीं आता। रंग रूप, इसका स्वरूप बदलता ही रहता है। कुछ दिनों पहले अलग ही रूप में मिला था। कुछ दर्द थे, जो मेरे जिस्म में जगह जगह गड़े पड़े थे। वो जो मजदूर होते हैं ना, जो चावल या गेहूं बीनने का काम करते हैं, तेरे इश्क़ ने भी उसी मजदूर की तरह उन सब दर्द को बीन बीन कर बाहर निकाला था। आह निकली थी मेरे मुंह से उन दर्द को अलग करते हुए क्योंकि जाने कबसे वो चुभे पड़े थे मेरे अंदर और जाने अनजाने मुझे आदत भी हो गई थी उनकी पर बाद में जब ज़ख्म भर गये थे तो कितना सुकून मिला था, वो सिर्फ मुझे ही पता है।
जब पहली बार मिली थी तो तेरा इश्क एक अजनबी के रुप में था। एक ऐसा अजनबी, जो धीरे धीरे हर रात मेरे सपनों के दरवाज़े पर दस्तक देता था। फिर तेरा इश्क घुसपैठिया हुआ। ज़बरदस्ती मेरे दिल के घर में घुस गया। कितनी भी कोशिश क्यों ना कर लूं…बेअसर ही रहता सब। एक वक्त आया जब वो मुझे एक मासूम बच्चे के रुप में दिखा। जैसे अगर मैंने ना संभाला तो वो अनाथ हो जाएगा। कोई साया उसके सर पर ना रहेगा। जल्दी ही मैं समझ भी गई थी कि तेरा इश्क एक ऐसा बिगड़ा सा बच्चा है, जिसे समझ में ही नहीं आता कि गर मैं भी उसे छोड़ दूं तो उसे संभालेगा कौन?
तेरा इश्क दरिंदा भी बना। मुझे सताना, डराना, धमकाना…जाने क्या क्या हो जाता था तुमसे। कभी हवस के गलियारों में खींचा तेरे इश्क ने तो कभी जन्नत की गलियों में घुमाया। कभी एक ऐसा घना पेड़ बना जिसके नीचे में सुकूं के कुछ पल गुज़ार सकूं तो कभी ऐसा पागल गुर्राया कुत्ता, जो दौड़ा दौड़ा कर दम ही निकाल दे। घुटन भी हुई तेरे इश्क की गिरफ्त में तो कभी खुली सांस भी मिली तेरे इश्क के घेरे में। कभी कभी तेरा इश्क शिकारी लगा, जो मेरे आंसूओं का शिकार किए बिना रह नहीं पाता, तो कभी तेरा इश्क शिकार बना अपनी मर्जी से।
तेरे इश्क ने कभी अपना अतीत मेरे सामने रखकर मुझे दुख के समंदर में डूबने के लिए छोड़ दिया तो कभी तैराक बन मुझे डूबने से बचाया। तेरा इश्क एक मेकअप आर्टिस्ट, जिसने मुझे सुंदर बना दिया…तेरा इश्क एक कीचड़ का तलाब, जिसमें मैं पूरी ही गंदी हो गई। तेरा इश्क वो तेज़ हवा, जिसमें मैं पतंग जैसी उड़ी…तेरा इश्क वो धार वाली कैंची, जिसने मुझे बीच से काट डाला। कभी तेरा इश्क मेरे पांव की बेड़ी बना तो कभी एक ऐसी चाभी जिसने मेरे हिस्से की खुशियों को खोल मेरे हवाले किया। ये कैसा है तेरा इश्क भला? गर्म आंच सा जलाता भी है…बर्फ सी ठंडक का एहसास भी देता है।
तेरा इश्क ऐसा ही है कि जिसके साथ मैं जी ना सकूं…जिसके बिना मैं मर जाऊं…
I want to meet you someday.