घर से सुबह 5 बजे निकली। चारों तरफ अंधेरा था। चाँद की रोशनी में जो दिख सकता था, वो दिख रहा था। ड्राइवर कार चला रहा था और मैं कार की सीट पे पीछे सर टिका के बैठी हुई थी। चाँद पर नज़र गई। पूर्णिमा होगी शायद उस दिन, इसीलिए चाँद अपने पूरे आकार में दिख रहा था। सफ़ेद, बीच में काले धब्बों के साथ। पहली बार चाँद को इतने गौर से देखा होगा मैंने। काफी कुछ सुना है चाँद के दाग को लेकर। किसी ने कुछ कहा, किसी ने कुछ। मैं भी सोचने लग गई। आखिर चाँद को ये दाग मिला कहाँ से? जो समझ में आया वो ज़रा अजीब सा था।
चाँद सबसे ज्यादा किसके करीब भला, बादलों के। कहते हैं कि आप जिसके करीब सबसे ज्यादा रहते हैं, कुछ कुछ वैसे बन ही जाते हैं। चाँद के अंदर भी बादलों का अंश आ गया। ये बादल का प्यार भी बड़ा मनमौजी सा है। जब चाहा चाँद को अपने आगोश में छुपा लिया, जब चाहा तब यूँ ही छोड दिया। चाँद बादल का अंश लेकर घूमता रहता है बस…उसके लिये प्यार की निशानी और लोगों के लिये वो एक दाग…ये प्यार व्यार में वैसे दाग मिल ही जाते हैं। कभी दिल पे, कभी दिमाग पे, कभी जिस्म पे तो कभी रूह पे… चाँद ना ही किसी और का हो पाया, और ना ही कहीं दूसरी जगह जा पाया। शयद उसकी नियति ही वही हो।
‘मैम, यहाँ से ले लूं? शॉर्टकट रास्ता है।‘ ड्राइवर ने जब पूछा तो मैंने कहा कि हाँ, ले लो। देखा भी नहीं मैंने कि उसका रुख किधर जा रहा है। मैं सोच में थी…मुझे मेरी ज़िंदगी का रुख भी कहां पता है…चाँद देख रही थी…तुम्हें सोच रही थी। कैसा रिश्ता था ना हमारा…चांद और बादल जैसा ही कुछ कुछ। मेरा तुम्हारे आगोश में आना भी तुम पर ही निर्भर था। मैं भी ना किसी की हो पाई और ना ही कहीं जा पाई। आज चांद को देखकर अपनी ये बात याद आ गई और व्याकुलता सी छा गई दिलो दिमाग पर।
अचानक ही मेरे फोन की घंटी बजी। देखा तो पैरी का फोन था। मेरे हैलो को सुनते ही वो खुश हो गई। ‘ओह, तू जगी थी? मैंने तो यूं ही कॉल कर लिया…तेरा सपना देखा इसलिए।‘ मैं उसकी बात पर हंसी। उसे बताया कि हां, कहीं टूर पर जाना है इसलिए एयरपोर्ट के लिए निकली हूं। वैसे क्या देखा सपने में? मेरे पूछने पर वो हिचकिचाई। अरे! ऐसा कुछ नहीं, बस यूं ही। फिर हाल चाल लेने लगी मेरा। बातों ही बातों में तुम्हारा ज़िक्र आ ही गया। ‘सुन, तेरी दोस्त हूं, इसलिए कह रही हूं…अपना रास्ता अलग कर ले। बोल कि किश्तों में ज़िंदगी नहीं चाहिए। या तो आओ…या जाओ…सपने दिखाने का हुनर है उसमें और तू भी उसी में जी रही है। कहकर देख, मैं बता रही हूं परिणाम अभी से।‘ कितने विश्वास से वो कितनी बातें कह गई थी। मैं बस हंस रही थी उसकी बातों पर क्योंकि जो भाव और जो विश्वास मैंने जिया और महसूस किया था, वो उसे कैसे समझाती। मैंने जल्दी ही बात खत्म करके फोन काटा। एयरपोर्ट पर जाकर सारी फॉरमैलिटी कंपलीट करने के बाद मैं एक जगह बैठ गई। 6.30 बज चुके थे। मैंने तुम्हें फोन किया। जिम से तुम आ गए होगे, ऐसा अंदाज़ा मैं लगा चुकी थी।
‘हैलो, हां मैं बोल रही हूं’ कहकर मैं रुक गई। तुम परेशान हो गए। ‘क्या हुआ? सब ठीक? इतनी सुबह?’ उफ्फ…चाहती थी कि गैरी सुने कि कितनी चिंता में आ गए थे तुम। इतनी परवाह कोई कैसे कर सकता है भला? ‘हां हां…मैं ठीक हूं…बस यूं ही…अब आ जाओ…ऐसे नहीं रह पाउंगी…फिर क्या फायदा अगर तुम्हारे रहते भी मुझे अकेले ही रहना पड़े तो’…थोड़ी देर की खामोशी के बाद तुम्हारी आवाज़ आई…’आज अचानक ये सब क्यूं?’ मैंने कहा कि ‘नहीं…अचानक नहीं…सोच रही थी बहुत दिनों से…कहा आज है…’ फिर से एक खामोशी हमारे दरमियां पसर गई। तुमने अपनी कई जिम्मेदारियां गिनवाईं…हमेशा की तरह…पर इस बार मैं हमेशा की तरह उसे नहीं समझ पाई। अब भी समझती तो शायद अपनी ज़िंदगी को कभी नहीं समझ पाती।
तुम- पॉसिबल नहीं है।
मैं- क्या ये तुम्हारा आखिरी निर्णय है
तुम – हां…
मैं – तुम याद हमेशा आओगे…अपना ख्याल रखना…
इस बात के बाद से फोन बंद हो गया। मैं खुद को अंदर से मजबूत करती रही। महज़ कुछ घंटों में सालों का रिश्ता ठहर गया था…शायद खत्म हो गया था।
गैरी कहती है कि कुछ नहीं बदलेगा…पर कुछ पहले जैसा भी तो नहीं रहेगा ना। सबको ख्वाहिश होगी चांद जैसा दिखने की…मेरी कभी नहीं थी पर मुझ पर भी एक दाग तो लग ही गया है, जो चांद की तरह शायद किसी को ना दिखे। मैं तुम्हारे बिना अधूरी नहीं…पर इस दाग के साथ पूरी भी नहीं…