यूं ही…


ख़्वाहिशों की बेल मर रही है

पानी औ’ खाद से सनी सोच कहां?

अजब सी है, अजीब सी है

दिल पे पड़ी गर्द कुछ नाज़ में है…

कुछ तो है जो गुसार सा है

नाज़िश में डूबा ‘मैं’

कभी कभी ग़ुलाम सा है…

नज़रों की व्याकुलता करती परेशां

नासाज़ सा करती है हर समां

यह जुनून नहीं,

कोई आह भी नहीं

शायद कुछ कमी सी है…

इत्तिफ़ाक पर है एतबार मुझे

इबादत हो जाती कुबूल है…

बेदाग सा मन अब बन्दिगी में है

अब या तो औकात दिखा

या तो फिर एहतियाज जता…

 

गर्द – धूल

नाज़ – घमंड

गुसार – छिनता या दूर जाता हुआ

नाज़िश – गर्व या घमंड

नासाज़ – अस्वस्थ, असंतुष्ट

एहतियाज – ज़रुरत

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