हां, तो मैं कह रही थी कि आपको पता है ना कि कुछ लोगों की ज़िंदगी फ़िल्मी होती है…तो मैं भी उन्हीं में से एक हूं।
मेरी दोस्त ऋचा, जाने कबसे मुझे दुबई बुला रही थी पर जाना हो ही नहीं पा रहा था। इस बार मैंने सोच ही लिया कि दुनिया टस से मस हो जाए, पर मुझे इस बार जाना ही है। सारी चीज़ें हो गईं और फाइनली जाने वाला दिन भी आ ही गया। सुबह 6.40 की फ्लाइट थी…अब ऐसे में भला किसे नींद आती है? मैं भी पूरी रात जागती ही रही। सुबह 3.30 बजे टैक्सी बुलाई। जान पहचान की टैक्सी थी तो मन में कोई ऐसा वैसा डर भी नहीं था। मैं टैक्सी में बैठ सपनों की दुनिया में खोई चल पड़ी।
‘अरे! ये इतना जाम कैसे लगा हुआ है और वो भी 4 बजे?’ मैं रास्ते में जाम को देखकर चिड़चिड़ी हो रही थी।‘ मैडम, शायद कोई एक्सीडेंट हुआ है, मैं रास्ता बदलता हूं।’ कहकर ड्राइवर ने दूसरा रुट पकड़ा। मैं थोड़ी सी रिलैक्स हुई ही थी कि अचानक फिर से मेरी कार रुक गई। ‘अरे! अब क्या हुआ?’ मैंने हड़बड़ाते हुए पूछा। ड्राइवर बिना कुछ बोले कार से उतरा और टायर्स चैक करने लगा। ‘पंक्चर है क्या?’ मैंने फिर से उतावलेपन में पूछा। ड्राइवर ने फिर कोई जवाब नहीं दिया और बोनट खोल कर कुछ देखने लगा। ‘मैडम जी, वायर टूट गया है, एक्सिलेटर काम नहीं करेगा।‘ खिड़की के पास आकर उसने मुझे इत्तला की। ‘टूट गया है मतलब? अब क्या होगा? कोई भी कैब आने में आधा घंटा तो लगा ही देगी। अब क्या करूं? अच्छा सुनो, किसी भी कैब को हाथ देकर रोको। मैं बात करती हूं।‘..एक ही सांस में मैं जाने कितनी बक बक कर गई थी। ड्राइवर ने मेरी बात मानते हुए गाड़ियों को हाथ देकर रोकना शुरु किया। तकरीबन 15 मिनट के इंतज़ार के बाद मेहनत रंग लाई और एक नई सी कार आगे जाकर रुक गई।
यहां से शुरु हुई मेरी उस सुबह की एक अलग कहानी। मैं भाग कर कार के पास गई। कार नई थी। सीट से प्लास्टिक के कवर तक नहीं हटे थे और अंदर एक नौजवान बैठा था। पहले तो मैं ठिठकी पर कोई और चारा नज़र नहीं आया। मैंने उसे अपनी समस्या बताते हुए लिफ्ट मांगा और वो तैयार भी हो गया। मैंने अपने ड्राइवर को उसकी कार का नंबर नोट करने को कहा और साथ ही हिदायत दी कि आधे घंटे में कॉल करना, ना उठाऊं तो पुलिस को ये नंबर दे देना। बढ़ती हुई हार्ट बीट्स को संभालती हुई मैं उस अजनबी के बगल में बैठ गई। याद नहीं कि कितनी बार ‘थैंक्यू सो मच’ कहा होगा।
‘आपको वैसे इस तरह से लिफ्ट नहीं लेनी चाहिए’- उसकी इस बात ने उसके नंबर बढ़ा दिए थे मेरी नज़र में। ‘I know, but I had no other option. Thank you so much’ कहकर मैंने फिर उसका एहसान माना। मेरे अंदर के डर को समझने के लिए आपको भी ये काम करना होगा वर्ना आप चाह कर भी नहीं समझ सकते कि उस वक्त मेरी हालत क्या थी। चारों तरफ अंधेरा…नई कार…नौजवान लड़का और डरी सहमी मैं…मत पूछो क्या हाल था मेरा…
कहां जाना है आपको?
दुबई
Oh! I also stay there. हैलीकॉप्टर बेचता हूं।
Oh, that’s great. (मैं मन में हंसी कि चालु हो गया ठरकी कहीं का। इंप्रेशन जमाने की कोशिश कर रहा है)
Yes, 15 days I stay in Dubai and 15 days in Delhi.( वो सहजता से कह रहा था)
That’s good ( मैं उसकी बातों को बस लपेट रही थी)
कोई रहता है वहां पर?
हां, मेरी सहेली। (उसके बढ़ते सवाल मुझे डरा रहे थे कि अब क्या करेगा ये?)
वो मुझे कई जगह के नाम बताता रहा जहां मुझे घूमना चाहिए था और मैं सोच रही थी कि एक बार घूम कर आने के बाद तो कोई कुछ भी बता सकता है। मैं मन ही मन में बस ये दुआ कर रही थी कि जल्दी से एयरपोर्ट आ जाए।
शायद अब कार मोड़ लेगा…शायद अब कुछ बकवास मारेगा…कहीं इसने हाथ पकड़ लिया तो…अपनी इन उम्मीदों में खोई फाइनली मैं एयरपोर्ट पहुंच ही गई। उसने डिक्की खोल मेरा समान उतारा, मुझे एक कार्ड देता हुआ बोला कि कोई भी ज़रुरत हो तो मुझे कॉल ज़रुर करना। मैंने बार बार उसका शुक्रिया अदा किया और अंदर भागी। सारी फॉरमैलिटिज़ करवाने के बाद मैंने उसका कार्ड देखा। अभिजीत रॉय…हां, जो कार्ड पर लिखा था, उसने भी वही नाम बताया था। सीनियर सेल्स मैनेजर था। मैं कार्ड को देखकर काफी देर तक मुस्कुराती रही। अंदर कैसे भाव थे, बता पाना मुश्किल है। शायद एक बार फिर से सामने जाकर ‘थैंक्यू सो मच’ कहने का मन था। उस रात मैंने दिल्ली का एक नया चेहरा देखा था, जो अच्छा लगा। मैं डरती रही और एयरपोर्ट भी आ गया।
‘कुछ भी हो सकता है’ के डर में मैंने वो पूरा रास्ता गुज़ारा…और कुछ नहीं हुआ…
aap to soch rahi thiki hath pakad hi le :p
nice story