हैं ये तेरी कैसी अर्ज़ियां
जिनमें नहीं हैं मेरी मर्ज़ियां
हर रात जाती यूं सर्द है
जैसे बर्फ की जमी कोई गर्द है
नन्हा सा हठ लिए तू खड़ा
फ़िज़ूल की ज़िद पर क्यों अड़ा
रुठना मनाना भला कब तक चले
शिकायतें अब तो इश्क में ढले
सोच को अब नया मोड़ देते हैं
चल अब दिलों को जोड़ लेते हैं