ज़िंदगी आजकल मेरी
बड़ी सही सी जा रही है…
गौतम बुद्ध सी ये ज्ञानी नहीं
पर अब वो नादानी नहीं
रूठने की रट नहीं है जिसको
कौन मना पाएगा उसको
ना फ़िक्र है ना फ़क्र है
जाने ये कैसा सब्र है
बेचैनी नहीं…बेज़ारी नहीं
फरमान भी इसका जारी नहीं
अजीब सा कुछ हिसाब है
जैसे बिन लिखी किताब है
छोड़ो कि सब बस बात है
अलग अब सब जज़्बात है
हां…
ज़िदगी आजकल मेरी
बड़ी सही सी जा रही है….