आधे आधे मन के साथ
आधी सी पड़ी हूं यहां
अब नहीं लगाती बॉडी वॉश
आंखों ने की काजल से दूरी
नाखुनों ने किया रंगों को बेदखल
पैर भागते हैं आलते से दूर
मेरी तरह उलझे केश पड़े हैं
होंठों पर कोई लालिमा नहीं
ना कोई हार है..ना श्रृंगार
बस कुछ मायूस सी चाहते हैं
मुझे खूबसूरत बताने वाले
ये कैसे मुझे सजा कर गए?