कल तक आसमां में दिखता चांद
आज ज़मीं पे यूं आ गया
जैसे बारिश का गिरता पानी
मेरी हथेलियों में समा गया
तृप्त हुआ है तन औ’ मन
किसान की उस मुस्कुराहट जैसा
जिसे मन मुताबिक मौसम मिला
ये अलग सी उमंग एक शिशु जैसी
जिसे मिल गया हो मां का पल्लू
ये सोच उस नए कपड़े जैसी
जिसके नाप और रंग से मन खुश
मन कुछ ऐसे ही झूमे है
जैसे सावन देख मयूर
हां…
अब प्यास बुझ ही जाएगी
स्वाति नक्षत्र की वो पहली बूंद
चातक को मिल चुकी है…