तेरे आने से महक उठा ये शहर
आज सुबह की ही तो बात थी
मेरी सोच और तेरा ख़्याल
साथ साथ कर रहे थे गुफ़्तगु
उलझी पड़ी थी सोच में सनी मैं
मिलन औ’ जुदाई का समय भी मयस्सर नहीं
बारिश की वो गिरती बूंदें
उस मौसम की याद दिलाती रही
जब घंटों लॉन्ग ड्राइव पर निकल जाते थे हम
जाने कितने दिनों से ये दिल
तेरे आने की दुआ मांग रहा था
घर की घंटी बजी,
मैंने दरवाज़ा खोला
सामने तू खड़ा था
उसी छेड़खानी के अंदाज़ के साथ
आंखों में शरारत लिए…
मुराद पूरी की थी खुदा ने मेरी
ओह!
मेरा चांद आज निकला था
मेरी ईद भी आज थी