तुम याद आए…


यूं ही आज बैठे बैठे

सोच में तुम आ गए…

याद आया वो बटुआ

जिसमें तुमने मुझे कैद कर लिया था

मेरे कार चलाते वक्त,

तुम्हारा मेरे बालों से खेलना

खाते समय वो पहला निवाला,

हमेशा तुम्हारे हाथ का ही होता था….

कितनी ज़िद भरी थी ना मुझमें

हर बात पर आंखें तरेर देती थी

और तुम….

एक अहंकार के एहसास से परे

मुझे ऐसे मनाते,

जैसे बॉस थी मैं ज़िंदगी की तुम्हारी

याद आया वो खुला बरामदा

जहां बालों को सुखाते हुए

उसके पानी के छींटों में

तुम अपना मन भीगोते

पता नहीं क्या क्या है

जो याद आता जा रहा है

देखो ना….

आज ही गए हो मेरे पास से

और आज ही याद भी आ गए…

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